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८३. पत्र: आहत-सहायक दलके नायकोंको
डर्बन
 
अप्रैल २०, १९००
 

राo,

आप भारतीय आहत-सहायक दल [इंडियन ऐम्बुलेन्स कोर] में नायकके तौरपर शामिल हुए इससे आपने स्वाभिमानका उत्साह बताकर अपने आपको तथा अपने देशको मान प्रदान किया है, और अपनी तथा अपने देश --दोनोंकी सेवा की है। अगर आप माने कि यही बदला बस है, तो शोभनीय बात होगी।

परन्तु मैं समझता हूँ कि आपके शामिल होनेका कुछ कारण तो मेरे प्रति आपका प्रेम- भाव है। जिस अंशमें मेरे प्रति प्रेम-भावके ही कारण शामिल हुए उस अंशतक मैं आपका आभारी हुआ हूँ। उसका बदला मैं पैसा देकर चुका नहीं सकता। पैसा देनेका सामर्थ्य मुझमें नहीं है। परन्तु आपके प्रेमको मैं भूल नहीं गया हूँ। और देशकी सेवा करने में खरे समयपर आपने मेरी मदद की, उसके स्मरणार्थ नीचे लिखी हुई भेंट आपको अर्पित कर रहा हूँ। आशा करता हूँ कि आप इसे स्वीकार करेंगे और इससे जो लाभ लिया जा सकता हो, वह लेंगे। आजसे एक वर्षतक या, इस बीच मुझे देश जाना हो तो, जबतक मैं दक्षिण आफ्रिकामें रहूँ तबतक, आपका या आपके मित्रका पाँच पौंड तकका ऐसा वकीली काम मुफ्त कर देनेको आबद्ध होता हूँ, जो डर्बनमें रहते हुए मुझसे बन सके।

मो० क० गांधी
 

मूल गुजराती पत्रकी फोटो-नकल (एस० एन० ३४४५) से।

८४. पत्र : डोली-वाहकोंको
[डर्बन
 
अप्रैल २४, १९००]
 

प्रियवर,

जब, युद्ध-क्षेत्रमें, हम घायलोंको लाने-ले जानेका काम कर रहे थे, मैंने अपने जिम्मेके डोली-वाहकोसे वादा किया था कि यदि आपने अपना काम श्रेयास्पद ढंगसे किया तो मैं खुद आपको एक छोटी-सी भेंट अपित करूँगा।

अधिकारी आपके कामसे खुश हैं, जैसे कि सचमुच सभी वाहकोंके कामसे । इसलिए मेरे अपने वादेके अनुसार काम करनेका समय आ गया है। आपके कामकी सराहनाके चिह्न-स्वरूप मैं आपको साथकी भेंट दे रहा हूँ। मुझे भरोसा है कि आप कृपापूर्वक इसे स्वीकार करेंगे।

१. गुजराती ' राजमान्य राजेश्री' का संक्षिप्त रूप ।

२. यह तारीख एक डोली (स्ट्रेचर)-वाहक प्रागजी दयालके नाम लिखे इसी तरहके गुजराती पत्र (एस० एन० ३७२९) से ली गई है।

३. उपलब्ध कागजातसे यह पता नहीं चलता कि भेंट क्या थी।

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