पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/२३७

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एक परिपत्र १९७ व्यापारिक ईर्ष्याको जरा भी सहारा न दे, तो क्या यह उसके अपने नागरिकोंके लिए भी अधिक अच्छा न होगा ? मेरा विश्वास है कि व्यापारिक ईर्ष्या या प्रतिस्पर्धाकी भावनाका उदय गणराज्यके शासकवर्गकी ओरसे नहीं होता। इससे स्पष्ट कि भारतीयोंकी कठिनाइयोंसे उपनिवेश-मन्त्री कितने क्षुब्ध हुए थे । अभीतक सब-कुछ उनके अधिकारमें है। फिर भी क्या भारतीयोंको इन तमाम निर्योग्यताओंके नीचे कराहते रहना पड़ेगा ? भारतीयोंका एक शिष्टमण्डल, युद्ध छिड़नेसे कुछ ही सप्ताह पहले प्रिटोरिया में ब्रिटिश एजेंटसे मिला था। उसे उन्होंने विश्वास दिलाया था कि सिर्फ युद्धकी घोषणा छोड़कर मैं सब-कुछ करके देख चुका हूँ, बातचीत अब भी चल रही है, और यदि कहीं दुर्भाग्यवश सम्भावित युद्ध छिड़ ही गया तो आपको इस सम्बन्धमें फिर चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी। लॉर्ड लैंसडाउनने सार्वजनिक रूपसे घोषणा की है कि भारतीय-विरोधी कानून युद्धका एक प्रधान कारण है । तो क्या जिन बुराइयोंका प्रतिकार करनेके लिए युद्ध आरम्भ हुआ है उनमें से एकको ब्रिटिश झंडेकी छायामें ही जारी रखा जायेगा ? अब तो उपनिवेश- कार्यालय यह बहाना भी नहीं कर सकता कि स्वशासित उपनिवेशोंपर हमारा पूरा वश नहीं है। ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर कालोनीमें से किसीको भी अभी स्वशासनके अधिकार नहीं मिले । ब्रिटिश संसदका उद्घाटन करते हुए, सम्राट्ने अपने भाषणमें विशेष रूपसे कहा है कि आगामी समझौतेके समय सरकारका एकमात्र लक्ष्य, जम्बेज़ी नदीके दक्षिणमें बसी हुई "गोरी जातियों" के साथ समान और वतनी जातियोंके साथ उचित व्यवहारका रहेगा। हमने सम्राट्के इस भाषणको बड़े खेद और शंकाके साथ सुना है। युद्धसे पहले यह लक्ष्य " दक्षिण आफ्रिकावासी सब सभ्य जातियोंके समान अधिकार" बतलाया जाया करता था। इसलिए यदि अब लक्ष्यमें जान- बूझकर परिवर्तन करके “गोरी जातियाँ" कर दिया गया है तो यह गम्भीर चिन्ताका विषय है। " इसके साथ हम पुराने गणतन्त्री राज्योंके उन कानूनोंका सार नत्थी कर रहे हैं, जिनका प्रभाव भारतीयोपर पड़ता है। यह प्रश्न अति गंभीर और हमारी स्थिति अति कष्टदायक है। अत्याचारका जुआ खींचते-खींचते हम इतने थक चुके हैं कि हममें और प्रयत्न करने तकका उत्साह नहीं रहा। अब तो हम दर्द के मारे केवल कराह सकते हैं। अब इस दारुण भारसे मुक्त होने में हमारी मदद करना आपका काम है। हम अधिक अच्छे व्यवहारके अधिकारी बनने के लिए सब-कुछ कर चुके हैं। युद्धमें हमने उपनिवेशियोंके साथ कन्धेसे-कन्धा भिड़ाकर योग दिया है • भले ही वह कितना ही तुच्छ क्यों न हो । हमने यह सिद्ध कर दिखानेका यत्न किया है कि जहाँ हम ब्रिटिश प्रजाओंके अधिकार और विशेषाधिकार पानेके लिए उत्सुक हैं, वहाँ उनके कर्त्तव्योंकी ओरसे भी विमुख नहीं हैं। हमने निर्विवाद रूपसे यह भी सिद्ध कर दिया है कि दक्षिण आफ्रिकामें हमें जो तिरस्कार सहना पड़ता है उसका औचित्य प्रतिपादित करनेवाला एक भी कारण विद्यमान नहीं है । - भारतमें सार्वजनिक संस्थाएँ तथा जनताके पत्र और इंग्लैंडमें हमारे मित्र यदि मिलकर जोरोंसे प्रयत्न करें तो न्याय मिले बिना नहीं रह सकता। हमारे पक्षके न्यायसंगत होने के बारेमें दो राय नहीं हैं -- हो नहीं सकतीं; इसलिए यह पूर्णतः सम्भव है । अवसर भी या तो अभी है या कभी नहीं होगा; क्योंकि, अनुभवसे स्पष्ट है कि, निबटारा हो जानेके बाद राहत मिलना असम्भव हो जायेगा । आपका आज्ञाकारी सेवक, मुहम्मद कासिम कमरुद्दीन ऐंड कं० और उन्नीस अन्य Gandhi Heritage Portal