पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/२३६

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१९६ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय -- लिखे हुए थे, फिर भी अमलमें उनका अर्थ प्रायः कुछ नहीं था । वस्तियोंका कानून लागू करनेकी धमकी बार-बार दी जाती थी, परन्तु उसका प्रयोग सम्मानित भारतीयों के विरुद्ध कभी नहीं किया जाता था। दूकानदारों और दूसरे लोगों में से थोड़ोंको - बहुत थोड़ोंको - ही पटरियों और दूसरे उपनियमोंके कारण अपमानका सामना करना पड़ता था। अब सब-कुछ बदल गया है। पुरानी सरकारके एक-एक भारतीय-विरोधी अध्यादेश (आर्डिनेन्स) को खोदकर निकाला जा रहा है और कठोर ब्रिटिश नियमशीलताके साथ, उसके शिकारोंपर लागू किया जा रहा है। जो मुट्ठीभर गरीब भारतीय युद्ध छिड़नेसे पहले ट्रान्सवाल छोड़कर नहीं जा सके थे और जो इसी कारण अब वहाँ रह गये हैं, उन्होंने इन कानूनोंको लागू करनेका विरोध किया है, परन्तु अबतक उसका फल कुछ नहीं निकला। गत २५ मार्चको उच्चायुक्त (हाई कमिश्नर) के नाम निम्न तार भेजा गया था : परमश्रेष्ठ उच्चायुक्तके निजी सचिव : प्रिटोरिया और जोहानिसबर्ग में इस समय मौजूद कुछ ब्रिटिश भारतीयोंने भारतीय शरणार्थी समितिको लिखा है कि उन्हें बस्तियों में चले जानेका नोटिस मिला है; उन्हें पटरियोंपर नहीं चलने दिया जाता और पुराने गणराज्यके भारतीय-विरोधी कानूनोंका आम तौरपर कठोरतासे प्रयोग किया जाता है। मुझसे कहा गया है कि मैं परमश्रेष्ठका ध्यान सम्राट्-सरकारके द्वारा यह मान लिया जानेकी ओर आदरपूर्वक खींच दूं कि उक्त प्रकारके कानून आपत्तिजनक हैं, और वह उन्हें हटा देनेका प्रयत्न करेगी। ये कानून अब जैसी कठोरतासे लागू किये जा रहे हैं वैसे शायद पुराने शासनमें कभी नहीं किये गये थे। समितिकी प्रार्थना है कि जबतक आम निबटारा न हो जाये तबतक रियायत की जाये । हम इसके उत्तरकी व्यग्रतासे प्रतीक्षा कर रहे हैं। ऊपर पुराने गणराज्यके अधिका- रियोंकी जिस ढीलका जिक्र किया गया है उसका एक बड़ा कारण इस प्रकारके कानूनोंके विरुद्ध उस समयके ब्रिटिश एजेंट और उपनिवेश-मन्त्री द्वारा किये हुए प्रतिवाद भी थे । भारतीय लोगोंने बस्तियोंके कानूनके विरुद्ध जो प्रार्थनापत्र दिया था उसका उत्तर श्री चेम्बरलेनने बहुत सहानुभूतिपूर्ण दिया था। उससे प्रकट होता है कि वे इसे बहुत नापसन्द करते थे और तभी चुप हुए थे जब कि वे विवश हो गये। उनके उत्तरके कुछ अंश ये हैं : मेरी सहानुभूति प्राथियोंके साथ है; इसलिए मुझे अत्यन्त खेद है कि मैं अपने सामने उपस्थित प्रार्थनापत्रका उत्तर अधिक उत्साहवर्धक नहीं दे पा रहा हूँ। मेरा विश्वास है कि वे सब शान्ति-प्रेमी, कानूनका पालन करनेवाले और पुण्यशील लोग हैं। अब तो मैं इतनी आशा ही कर सकता हूँ कि इस समय जो हालात हैं उनके होते हुए भी वे अपने निरन्तर परिश्रम, असन्दिग्ध बुद्धिमत्ता और अदम्य वृढ़तासे उन बाधाओंको पार करनेमें सफल हो जायेंगे जिनका उन्हें इस समय अपने पेशोंमें सामना करना पड़ रहा है। अन्तम में इतना ही कहता हूँ कि मेरी इच्छा पंच-फैसलेका पालन ईमानदारीसे करनेकी है, और मैं चाहता हूँ कि उसके द्वारा दोनों सरकारोंके बीचके कानूनी और अन्त- र्राष्ट्रीय झगड़ोंका अन्त हो जाये । परन्तु उसके पश्चात् भी, में दक्षिण आफ्रिकी गण- राज्यके सामने इन व्यापारियोंकी मित्रतापूर्वक वकालत करने और शायद उस सरकारसे यह कहने के लिए तो स्वतन्त्र रहूँगा ही कि अपने कानूनी अधिकारोंका निर्णय करा चुकनेपर क्या उसके लिए स्थितिपर नई दृष्टिसे पुनवचार कर लेना बुद्धिमत्ताका कार्य न होगा ? और यदि वह भारतीयोंके साथ अधिक उदारतासे व्यवहार करनेका निश्चय करे और Gandhi Heritage Portal