पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/२४०

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२०० सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय कि तार देकर डर्बन और केपटाउनके एक-एक प्रतिनिधि-व्यापारीका नाम मँगवाया । एक नाम उसी वक्त इस विरोधके साथ उन्हें दिया गया कि एक परवाना करीब-करीब बेकार है; किन्तु वह भी मंजूर नहीं किया गया है। मैं आशा करनेकी घृष्टता करता हूँ कि आपने इस मामले कार्रवाई कर ही दी होगी और उसके फलस्वरूप आपके पास इस पत्रके पहुँचने से पहले कुछ राहत दे दी जायेगी। तारकी नकल नीचे लिखे व्यक्तियोंको भेज दी गई है। गत सप्ताह आपको भेजे गये गश्ती पत्र के सिलसिले में मैं उन थोड़ेसे ब्रिटिश भारतीयोंके आवेदनपत्रोंपर आये उत्तरों की प्रतिलिपि इसके साथ भेज रहा हूँ, जो इस समय प्रिटोरिया और जोहानिसबर्गमें हैं और जो लड़ाई छिड़ने से पहले ट्रान्सवालसे नहीं जा सके थे । आपका सच्चा, दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० [संलग्नपत्र ] सेवामें श्री एन० जी० देसाई और अन्य प्रार्थी पो० ऑ० बॉक्स ३३४८ जोहानिसबर्ग महाशयगण, प्रेषक भारतीय प्रवासी पर्यवेक्षक ३८१७) से । आपका इसी माहकी २२ तारीखका पत्र मिला । आपने जिन विनियमोंका उल्लेख किया है उन्हें भूतपूर्व नगर परिषदने मंजूर किया था; और सैनिक अधिकारियोंका यह इरादा नहीं है कि जो विनियम ब्रिटिश अधिकारकी तारीखसे पहले मौजूद थे उनमें से किसीमें परिवर्तन किया जाये । मैं सुझाव देने की इजाजत लेता हूँ कि इसी प्रकारका प्रार्थनापत्र प्रथम नियुक्त नगर परिषदको भेजा जाये । सेवा में ई० उस्मान लतीफ पो० ऑ० बॉक्स ४४२० जोहानिसबर्ग शाही सरकार, म्युनिसिपैलिटी जोहानिसबर्ग नवम्बर २४, १९०० आपका विश्वासपात्र, (हस्ताक्षर) ओ' मियारा मेजर त्थानापन्न नगराध्यक्ष प्रिटोरिया मार्च १५, १९०१ मैं आपको सूचना देने की इजाजत लेता हूँ कि, सैनिक गवर्नरने पहले जो निर्णय दिया था कि मुसलमान और हिन्दू – सब " एशियाइयों" को जो “अभी" प्रिटोरियामें हैं, कुली-बस्तियोंमें रहना ही होगा, वह बिना - १. इस पत्रकी दफ्तरी नकलसे पता नहीं चलता कि यह किनको-किनको भेजा गया था । २. अप्रैल २०, १९०१ का पत्र । ३. ये उत्तर, इस पत्रक उद्धरणोंके साथ, २४-५-१९०१ के इंडिया में प्रकाशित हुए थे । Gandhi Heritage Portal