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१५७. विदाई -सभामें भाषण

गांधीजीको, उनके भारत रवाना होनेसे पूर्व, नेटाल भारतीय कांग्रेस और अन्य भारतीय संस्थाओंकी ओरसे मानपत्र दिये गये ये । डर्बनके कांग्रेस-भवनकी विराट सभामें कई प्रमुख यूरोपीय नागरिक भी शामिल थे । इस अवसरपर गांधीजीने जो भाषण दिया उसका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जाता है ।

[ ढर्बन ]

अक्टूबर १५, १९०१

श्री गांधीने उस भव्य और बहुमूल्य मानपत्रके[१] लिए सच्चे हृदयसे धन्यवाद दिया। उन्होंने अनेक उपहारोंके दाताओंको, और उनको भी धन्यवाद दिया, जिन्होंने उनकी प्रशंसा में बढ़-बढ़ कर भाषण दिये थे। उन्होंने कहा कि मैं इस प्रश्नका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं ढूंढ़ सका कि इस सबका अधिकारी मैं कैसे बन गया हूँ ? सात या आठ वर्ष हुए,[२] हम लोग एक खास सिद्धान्त लेकर चले थे और मैंने इन उपहारोंको इस संकेतके रूपमें स्वीकार किया है कि हम उसी सिद्धान्तपर बढ़ते रहेंगे, जिसे लेकर उस समय चले थे। नेटाल भारतीय कांग्रेसने उपनिवेशमें बसनेवाले यूरोपीय और भारतीयों के बीच सद्भाव बढ़ानेका काम किया है। उसमें हमने प्रगति की है, भले वह थोड़ी ही क्यों न हो। पिछले चुनाव-सम्बन्धी भाषणोंमें हमने भारतीयोंके विरुद्ध बहुत-कुछ सुना। दक्षिण आफ्रिकामें आवश्यकता गोरे लोगोंके देशकी नहीं, गोरे भ्रातृमण्डलकी भी नहीं, बल्कि एक साम्राज्यगत भ्रातृमण्डलकी है। प्रत्येक व्यक्तिका, जो साम्राज्यका मित्र है, यही लक्ष्य होना चाहिए। इंग्लैंड पूर्वमें अपने अधीन प्रदेशोंको कभी नहीं छोड़ेगा और जैसा कि लॉर्ड कर्जनने कहा है, भारत ब्रिटिश साम्राज्यका उज्ज्वलतम रत्न है। हम दिखाना चाहते हैं कि हम समाजके एक ग्राह्य अंग हैं; और यदि हमने जो कार्य प्रारम्भ किया था उसे जारी रखेंगे तो “जब कुहरा छँट जायेगा, हम एक-दूसरेको ज्यादा अच्छी तरह जानेंगे ।" इसके बाद श्री गांधीने उनकी देशी भाषामें भाषण दिया, और भारतीयोंके उस विशिष्ट देशबन्धुके प्रति हर्षोल्लासके साथ सभा समाप्त हुई ।

[ अंग्रेजीसे ]
नेटाल ऐडवर्टाइज़र, १६-१०-१९०१
[ संलग्न पत्र १]

[अभिनन्दन-पत्र ]

सेवामें

श्री मोहनदास करमचंद गांधी,
बैरिस्टर
अवैतनिक मन्त्री, नेटाल भारतीय कांग्रेस, आदि आदि

महानुभाव,

हम नीचे हस्ताक्षर करनेवाले नेटालवासी सब वर्गोंके भारतीयोंके प्रतिनिधिरूपमें, आपके भारत-प्रस्थान करनेके अवसरपर आपकी सेवामें यह अभिनन्दन पत्र भेंट करनेकी आज्ञा चाहते हैं । हमारे पास यथपि

  1. देखिए संलग्न पत्र १ और २ ।
  2. यह उल्लेख १८९४ में नेटाल भारतीय कांग्रेसकी स्थापनाका है ।