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कलकत्तेमें भाषण

अच्छा साबित हुआ कि जो इसपर राय देनेके अधिकारी हैं खुद उन्होंने स्वीकार किया है कि घायलोंको उठाकर पच्चीस-पच्चीस मील चलना एक रिकार्ड कायम करनेकी बात है। खुद कर्नल गालवेने हमें दो दिनमें यह फासला तय करनेकी छूट दी थी ।

जनरल बुलरने अपने खरीतोंमें इस दलके कामोंका सम्मानपूर्वक उल्लेख किया है ।

यह है, नेटालके भारतीय आहत-सहायक दलकी सेवाओंका, संक्षेपमें, लेखा ।

जो भारतीय व्यापारी अपने व्यापारको छोड़कर दलमें शरीक नहीं हो सकते थे उन्होंने जरूरतमन्द स्वयंसेवक नायकोंके परिवारोंके निर्वाहके लिए धन इकट्ठा किया और उनके लिए वर्दियाँ मुहैया कर दीं।

डर्बन देशभक्त महिला संघ कोश ( डर्बन विमन्स पैट्रिऑटिक लीग फंड) को भी एक अच्छी रकम लड़ाईपर गये स्वयंसेवकोंके लिए भेजी गई थी। भारतीय महिलाओंने तकियोंके गिलाफ, वास्कट वगैरा बनाकर लड़ाईमें अपना हिस्सा अदा किया।

घायलोंको देनेके लिए व्यापारियोंने हमें सिगरेटें भी भेजीं। यह सब धन ऐसे समय एकत्र किया गया था जब कि नेटालका भारतीय समाज, सामान्य शरणार्थी सहायता कोशको छुए बिना, ट्रान्सवाल तथा शत्रु द्वारा अधिकृत नेटालके भागोंसे आये हुए हजारों शरणार्थी भारतीयोंका उदर-पोषण कर रहा था ।

इस मौकेपर अगर मैं आपको यह न बताऊं कि जब ब्रिटिश सैनिक कामपर होता है अथवा अस्थायी पराजयकी स्थितिमें होता है तब उसका जीवन कैसा होता है, तो मैं अपने प्रति सच्चा नहीं हूँगा। पिछले रविवारको समाप्त होनेवाले सप्ताहमें मैंने आपको ट्रैपिस्ट मठकी प्रशान्त स्तब्धताका वर्णन सुनाया था । हममें से कुछको सुनकर आश्चर्य होगा, परन्तु उन विशाल छावनियोंके अन्दर भी ऐसी ही स्तब्धता विद्यमान थी, यद्यपि वहाँ अधिकसे-अधिक हलचल थी । परन्तु उस दिलको हिला देनेवाले समय में कोई एक मिनट भी बेकार नहीं खो रहा था । सर्वत्र सम्पूर्ण व्यवस्था और सम्पूर्ण स्तब्धता थी । उस समय अंग्रेज सिपाही बहुत प्यारा लग रहा था। वह हमसे और हमारे आदमियोंसे बिलकुल खुले दिलसे मिलता-जुलता था। जब कभी उसे कोई अच्छी भोजन आदिकी चीज मिलती, हमें उसका हिस्सेदार बनाता था। एक बार इस खियेवेलीकी छावनीमें ऐसा किस्सा हो गया जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उस दिन बहुत गरमी पड़ रही थी । पानीकी बेहद कमी थी। केवल एक कुआँ था। एक अधिकारी प्यासोंको टीनके डिब्बोंमें थोड़ा-थोड़ा पानी बाँट रहा था। इस समय कुछ डोली (स्ट्रेचर) वाले अपना काम करके लौटे। अंग्रेज सिपाही जो पानी पी रहे थे, हमारे इन आदमियोंको खुशीके साथ अपने हिस्सेमें से पानी देने लगे। और मैं कैसे बताऊँ, वर्ण और धर्मकी अपेक्षा न करनेवाला वह भाईचारा ! लाल क्रॉस या खाकी वर्दीने सबके बीच एकता पैदा कर दी, चाहे इनके धारण करनेवालेकी चमड़ी गोरी रही हो या गेहुँए रंगकी।

एक हिन्दूकी हैसियतसे में लड़ाईमें विश्वास नहीं करता । परन्तु अगर कोई बात मुझे उसका कुछ समर्थक बना सकती है तो वह है, यह कीमती अनुभव, जो हमने लड़ाईके मोर्चेपर प्राप्त किया । निश्चय ही जो हजारों आदमी लड़ाईके मैदानपर गये उसका कारण खूनकी प्यास नहीं थी । यदि मैं आपकी भावनाओंको यत्किचित् ठेस पहुँचाये बिना एक अत्यन्त पवित्र पुरुषका नाम ले सकूं तो मैं कहना चाहता हूँ कि उन्हें अर्जुनके समान विशुद्ध कर्तव्यकी भावना युद्धक्षेत्रमें ले गई थी। और इसने कितने जंगली, घमण्डी और उद्धत जनोंको सिखा कर भगवानके नम्र जीवोंमें नहीं बदल दिया है ?