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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लड़ाईके सिलसिलेमें अपने देशभाइयोंके कामकी मैं सराहना कर रहा था। अब मैं दूसरी ओरकी बातें बतानेके लिए आपको थोड़ा रोकना चाहता हूँ । मुझे लगता है कि असली काम अब शुरू हो गया है। सिपाहियों और स्वयंसेवक सिपाहियोंको जिन कठिनाइयोंसे गुजरना पड़ा है और जो अभी खतम नहीं हुई हैं, उनकी तुलनामें हमारा वह काम आखिर बहुत छोटा था। उसकी प्रशंसा हो रही है, क्योंकि हमसे ऐसी कभी आशा नहीं की जा सकती थी । किन्तु हमने ये जो कुछ अपेक्षाएँ पैदा कर दी हैं उनको क्या हम भविष्य में पूरा कर सकेंगे ? बस, यहीं कारण है, जिससे मुझे लगता है, हममें आत्म-प्रशंसाका भाव पैदा होनेके बजाय नम्रताका भाव पैदा होना चाहिए। इसलिए जहाँ शायद मेरा कर्तव्य था कि अपने देशभाइयोंने जो थोड़ा-सा काम किया उसकी तरफ आपका ध्यान दिलाऊं वहीं मेरा यह भी कर्तव्य है कि अब हमें आगे क्या-क्या करना है इसकी भी सबको याद दिलाऊँ । परम माननीय श्री हेनरी एस्कम्ब और कुछ दूसरे हमारे कामके बारेमें बहुत उदारतापूर्वक सोचते रहे हैं। अतः अगर अब मैं उनके शब्द आपको सुनाऊँ तो मुझे विश्वास है, आप मुझे अवश्य क्षमा करेंगे। जब हम मोर्चेपर जा रहे थे तब श्री एस्कम्बने हमारी प्रार्थनापर हमें आशीर्वाद दिया था । उन्होंने कहा था :

आप लोग लड़ाईके मैदानवर जा रहे हैं। इस अवसरपर विदाईके संदेशके रूपमें दो शब्द कहने के लिए आपने जो मुझे बुलाया इसे मैं अपना विशेष सम्मान समझता हूँ । आप अपने साथ न केवल हम उपस्थित लोगोंकी, बल्कि नेटालके समस्त निवासियोंकी, और सम्राज्ञीके महान् साम्राज्यकी शुभ कामनाऐं लिये जा रहे हैं। इस महत्त्वपूर्ण युद्धकी अनेक घटनाओंमें यह घटना किसी प्रकार भी कम दिलचस्प नहीं है। यह सभा प्रकट करती है कि साम्राज्यकी एकता और दृढ़ताके लिए जो कुछ भी किया जा सकता है वह स्वेच्छासे करने के लिए नेटालके भारतीय प्रजाजन कृत-निश्चय हैं । और हम स्वीकार करते हैं कि नेटालमें जो अधिकारोंकी माँग कर रहे हैं वे अपने देशके प्रति कर्तव्य भी अदा कर रहे हैं। युद्धमें आपका स्थान उतना ही सम्मानपूर्ण होगा जितना कि लड़नेवालोंका । क्योंकि, अगर युद्धमें घायलोंकी देखभाल करनेके लिए कोई नहीं होगा तो युद्ध अबकी अपेक्षा कहीं अधिक भयानक बन जायेगा ।... यह बात कभी भुलाई नहीं जा सकेगी कि आप नेडालके भारतीयोंने--- जिनके साथ न्यूनाधिक अन्याय हुआ है---अपने कष्टोंको भुला दिया और आप अपनेको साम्राज्यका अंग मानकर उसकी जिम्मेवारियोंको भी उठाने के लिए तैयार हो गये। आज क्या हो रहा है, इसका जिनको ज्ञान है उनकी हार्दिक शुभ कामनाएँ आपके साथ हैं। और आपके इस कामके समाचार जहाँ-जहाँ भी पहुँचेंगे, उनसे समस्त साम्राज्य में सम्राज्ञीके भिन्न-भिन्न वर्गोंके प्रजाजनोंको एक दूसरेके नजदीक लाने में मदद मिलेगी ।

और नेटाल ऐडवर्टाइज़रने यह लिखा था :

भारतीय आबादीने जो प्रशंसनीय भावना प्रकट की है इसके लिए उसे बधाई दी जानी चाहिए। उपनिवेशने भारतीयों के प्रवासके बारेमें, और आम तौरपर भारतीयोंके प्रति, जो रुख धारण कर रखा है उसे देखते हुए तो और भी अधिक प्रशंसाकी बात है। भारतीय समाज बड़ी आसानीसे उदासीनताका रुख धारण करके कह सकता था कि 'हम दुश्मनकी मदद नहीं करेंगे परन्तु हम आपकी भी मदद नहीं करेंगे, क्योंकि आप