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१. पत्र: ब्रिटिश एजेंटको

सन् १८८५ का कानून नं०३ जिस रूपमें १८८६ में संशोधित किया गया था, उससे " कुली, अरब, मलायी और तुर्की साम्राज्यके मुसलमान प्रजाजन" नागरिकताके अधिकारोंसे वंचित हो गये थे । छिने हुए इन अधिकारों में अचल सम्पत्ति रखनेका अधिकार भी शामिल था। साम्राज्य-सरकार और ट्रान्सवाल-सरकार में इस विषयमें मतभेद था कि उक्त कानून भारतीयोंपर लागू हो सकता है या नहीं। यह प्रश्न पंच-फैसलेके लिए आरेंज फ्री स्टेटके मुख्य न्यायाधीशको सौंपा गया । उसने निर्णय किया कि ट्रान्सवाल-सरकारको अधिकार है और वह बाध्य है -कि भारतीय तथा अन्य एशियाई व्यापारियों के साथ व्यवहार करने में वह उक्त कानून की कार्यान्वित करे । शर्त केवल यह रखी गई कि यदि ऐसे लोगोंकी ओर से आपत्ति की जाये कि उनके साथ किया जानेवाला बरताव कानून की व्यवस्थाओं के विरुद्ध है, तो अदालतों से कानून की व्याख्या करा ली जाये । नीचे दिये हुए पत्रका सम्बन्ध उसके बादकी घटनाओंसे है।


प्रिटोरिया फरवरी २८, १८९८
 

सेवामें

सम्राज्ञीके एजेंट

प्रिटोरिया

महोदय,

हम, नीचे हस्ताक्षर करनेवाले प्रिटोरिया और जोहानिसबर्ग-निवासी ब्रिटिश भारतीय प्रजाजन, ट्रान्सवालके भारतीय समाजके प्रतिनिधियोंकी हैसियतसे आदरपूर्वक सम्राज्ञी-सरकारके सूचनार्थ निवेदन करना चाहते हैं कि हम, सम्राज्ञी-सरकारके सुझावके अनुसार, १८८६ में संशो- धित १८८५ के कानून नं० ३ की व्याख्या कराने के लिए दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके उच्च न्याया- लयमें कार्रवाई करनेवाले हैं। यह व्याख्या ब्लूमफांटीनके मुख्य न्यायाधीश डी'विलियर्सके निर्णय की शतोंके अनुसार कराई जायेगी। इसका हेतु यह निर्णय प्राप्त करना होगा कि ब्रिटिश भारतीय प्रजाजन इस राज्यके कस्बों और गाँवोंमें व्यापार करनेके अधिकारी है अथवा नहीं।

तथापि हम अपना खेद प्रकट किये बिना नहीं रह सकते कि सम्राज्ञी-सरकारने इस विषयमें हमारी ओरसे अन्त तक कार्रवाई न करनेका निश्चय किया है। क्योंकि हमने आशा की

१. यह परीक्षात्मक मुकदमा- -तैयब हाजी मुहम्मद बनाम डा. विलम जोहानिस लीड्स, राज्यमन्त्री, दक्षिण आफ्रिकी गणराज्य - इसी दिन दायर कर दिया गया था। अन्ततः, अगस्त ८, १८९८ को, इसका फैसला भारतीयोंके विरुद्ध कर दिया गया ।

२. देखिए खण्ड १, पृष्ठ १७८ और १९१ ।

३-१ Gandhi Heritage Portal