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२११. पत्र : ट्रान्सवालके गवर्नरको

कलकत्ता हाउस
प्रिटोरिया
जनवरी ६, १९०३

सेवामें

निजी सचिव
परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदय
प्रिटोरिया

महोदय,

गत २ जनवरीको ब्रिटिश भारतीय समितिके अध्यक्षकी हैसियतसे मैंने माननीय उपनिवेश-सचिवकी सेवामें एक पत्र भेजा था । उसमें पूछा था कि क्या परम माननीय जोज़ेफ़ चेम्बरलेन इस उपनिवेशमें रहनेवाले मेरे देशबन्धुओंपर लगी निर्योग्यताओंके सम्बन्धमें ब्रिटिश भारतीयोंके एक शिष्टमंडलसे भेंट करनेकी कृपा करेंगे। सहायक उपनिवेश सचिवने श्री मो० क० गांधी एडवोकेटको उसका प्रवक्ता होनेकी अनुमति देनेसे जो इनकार कर दिया था, पत्रमें उसके विरुद्ध आपत्ति भी प्रकट की गई थी। उन्होंने कई बार जबानी और लिखित रूपसे याद दिलानेपर, और ४ दिनके विलम्बसे, संलग्न उत्तर[१] भेजा है। माननीय उपनिवेश सचिवको लिखे पत्रकी नकल[२] भी साथ नत्थी है ।

मैं नम्रतापूर्वक पुनः निवेदन करता हूँ कि श्री गांधीको हमारा प्रवक्ता होनेकी अनुमति दी जाये। मैं यह भी उचित आदरके साथ निवेदन कर दूं कि यह नामंजूरी मेरी समितिको अत्यन्त असाधारण कार्यवाही जान पड़ती है । सम्भवतः परमश्रेष्ठ महानुभावको मालूम होगा कि अबतक श्री गांधीको ब्रिटिश अधिकारियोंके सम्मुख ब्रिटिश भारतीयोंका प्रतिनिधित्व करने दिया गया है । उदाहरणके लिए, उन्होंने प्रिटोरिया-स्थित ब्रिटिश एजेंटके सामने कई मौकोंपर तथा युद्ध आरम्भ होनेसे पहले जोहानिसबर्ग स्थित ब्रिटिश उपप्रतिनिधि (वाइस कॉन्सल) के सामने हमारा प्रतिनिधित्व किया था ।

भूतपूर्व गणराज्य सरकार हमारे हितोंकी विरोधी थी। फिर भी, श्री गांधीको उसके सदस्योंके सामने हमारा प्रतिनिधित्व करने दिया जाता था ।

मेरी समिति यह भी चाहती है कि मैं यहाँ नम्रतापूर्वक एशियाई पर्यवेक्षक (सुपरवाइज़र ऑफ़ एशियाटिक्स)को बलात् हमारा व्याख्याकार और प्रवक्ता बनानेके विरोधमें समितिकी आपत्ति प्रकट कर दूं। हमारी सदासे ही यह मान्यता है कि परम माननीय महानुभाव ऐसे शिष्टमण्डलोंसे भेंट करना चाहते हैं, जिनके प्रतिनिधियोंपर कोई सरकारी नियंत्रण न हो। किन्तु उक्त अधिकारीकी उपस्थितिसे शायद ही इस उद्देश्यकी सिद्धि हो सके ।

  1. यह पत्र नहीं दिया जा रहा है ।
  2. देखिए पिछला शीर्षक ।