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ट्रान्सवालवासी भारतीय

पिछली फरवरीमें तिमाही परवाने दे दिये गये। मजिस्ट्रेटने उसके पहले कोई सूचना नहीं दी।

किन्तु, २३ मार्चको उसने दुकानदारोंको दिसम्बरकी उपर्युक्त सूचनाकी याद दिलाते हुए एक सूचना दी । उपनिवेश-सचिवको अर्जी दी गई। उसका जवाब सहायक उपनिवेश-सचिवने दिया कि, दिसम्बरकी सूचनाका पालन होना ही चाहिए। इसलिए उपनिवेश सचिव श्री डेविडसनको व्यक्तिगत तार किया गया है, क्योंकि श्री ल्युनान और श्री गांधीको आश्वासन देनेवाले अफसर वही थे। यह बात परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नरकी निगाहमें भी लाई गई है। तिमाही अगले मंगलवारको समाप्त होती है। लिखनेके वक्ततक कोई जवाब नहीं मिला है। इस बातका उल्लेख कर देना अनुचित न होगा कि केवल भारतीयोंको तिमाही परवाने दिये गये हैं, यह अपने-आपमें एक बड़ी शिकायत की बात है । किन्तु जिस जीवन-मरणके संघर्षकी तसवीर ऊपरके उदाहरणोंसे खिचती है उसके सामने ये बातें तुच्छ पड़ जाती हैं। और ये सब रोगके लक्षण मात्र हैं। एशियाई-विरोधी कानून तो अभी है ही । कानूनके रहते हुए भी भारतीय एकदम अफसरोंको दयाके मोहताज हैं। परमश्रेष्ठने कहा है कि परिवर्धित विधान परिषदके बननेपर कानूनोंके सारे प्रश्नका निपटारा किया जायेगा। ये टीपें मित्रोंको केवल इसलिए भेजी जा रही हैं कि क्या हो रहा है, इसकी खबर उन्हें रहे, जरूरी तौरपर किसी तात्कालिक कार्रवाईके लिए नहीं। क्योंकि, मुमकिन है, जबतक ये टीपें मित्रोंको मिलें तबतक सरकार राहत देना मंजूर कर ले। किन्तु यदि भविष्यमें तार भेजना जरूरी हो जाये तो इनसे उन्हें समझनेमें मदद मिल सकती है ।

[ अंग्रेजीसे ]

कलोनियल ऑफ़िस रेकर्ड्स : सी० ओ० २९१/६१ ।

२२४. ट्रान्सवालवासी भारतीय[१]

भारतीय पक्ष

इस ब्रिटिश उपनिवेशमें भारतीय यूरोपीयोंके साथ विशेष अधिकारोंके लिए समान रूपसे हकदार हैं; इस आधारपर कि, पहले तो वे ब्रिटिश प्रजा हैं और दूसरे वे हर तरहसे वांछनीय नागरिक हैं। श्री गांधीने स्टारके प्रतिनिधिसे कहा कि इससे प्रयोजन नहीं कि वे संसारके किस भागमें गये हैं, उन्होंने अपने व्यवहारसे सिद्ध किया है कि वे नियन्त्रण मानते हैं । वे उस देशकी राजनीतिमें कभी दखल नहीं देते और इसके अतिरिक्त वे उद्यमी, मितव्ययी और शराबसे परहेज करनेवाले हैं ।

उनको पूर्ण नागरिकताका अधिकार देनेकी वांछनीयतापर बोलते हुए श्री गांधीने कहा कि वे जानते हैं, उनकी तथाकथित गन्दी आदतोंको उनको पृथक् रखनेका एक कारण बताया जाता है। परन्तु उन्होंने दावा किया कि, स्थितिका वास्तविक रूपसे अध्ययन करनेपर यह सचाई सामने आ जायेगी कि भारतीय इतने गन्दे नहीं होते कि उनका सुधार ही न हो सके; और यह कि, उनके घरों और आदतोंमें जो गन्दगी पाई जाती है उसके लिए अधिकारी ही

  1. यह एक लेखका उद्धरण है जो पहले नेटाल विटनेसमें प्रकाशित हुआ था और फिर टाइम्स ऑफ इंडियामें छपा ।