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२३८. पत्र : दादाभाई नौरोजीको

२५ व २६ फोर्ट चेम्बस
रिसिक स्ट्रीट
जोहानिसबर्ग
मई ३१, १९०३

सेवा में

माननीय दादाभाई नौरोजी
लंदन

श्रीमन्,

मैं इसके साथ हमेशा जैसा वक्तव्य भेज रहा हूँ ।

हाइडेलबर्गके दुकानदारोंके अनुरोधपर मैंने इसके साथ मजिस्ट्रेटी कार्य-विवरणकी प्रति लौटा दी है। कार्रवाई दक्षिण आफ्रिकामें श्री चेम्बरलेनके निवास कालमें हुई थी । दुकानदारोंका कहना है कि यह टिप्पणी आपको भेजी जाये । परन्तु मैं आशा करता हूँ आप इसपर कोई कार्रवाई न करेंगे। इस समय यहाँके हमारे देशवासी ऐसी अशान्ति, उलझन और भयकी अवस्थामें हैं कि वे वस्तुस्थितिपर शान्त चित्तसे विचार नहीं कर सकते । इसलिए मैं आपसे निवेदन करूँगा कि श्री नाजर या मेरे पाससे जो वक्तव्य न आयें उन्हें स्वीकार करने और उनका उपयोग करनेमें सावधानीसे काम लें। हमारी नीति यह है, और होनी ही चाहिए, कि हाइडेलबर्गके कार्य-विवरणमें जो असुविधाएँ बताई गई हैं वैसी असुविधाओंको सहन करें । वे ज्यादा बड़े प्रश्नका एक पहलू मात्र हैं। सारा प्रयत्न वर्तमान कानूनके रद करानेपर केन्द्रित किया जाना चाहिए।

आपका आज्ञाकारी,
मो० क० गांधी

मूल अंग्रेजी पत्रकी फोटो-नकल (एस० एन० २२५७) से ।


२३९. अपनी बात[१]

इस समाचारपत्रकी जरूरतके बारेमें हमारे मनमें कोई सन्देह नहीं है। भारतीय समाज दक्षिण आफ्रिकाके राजकीय शरीरका निर्जीव अंग नहीं है; और इसलिए उसकी भावनाओंको प्रकट करनेवाले और विशेष रूपसे उसके हितमें संलग्न समाचारपत्रका प्रकाशन अनुचित नहीं समझा जायेगा। बल्कि, हम समझते हैं, उससे एक बड़ी कमी पूरी होगी।

ब्रिटिश दक्षिण आफ्रिकामें बसनेवाले भारतीय सम्राट्की प्रजा हैं; फिर भी वे कितनी ही कानूनी निर्योग्यताओंसे पीड़ित हैं। उनकी ओरसे बात करनेवालोंका कहना है कि ये कानून

  1. गांधीजीका यह अग्रलेख इंडियन ओपिनियनके पहले अंकके अंग्रेजी-विभागमें और उसका अनुवाद गुजराती, हिन्दी तथा तमिल विभागों में भी प्रकाशित हुआ था । यह उनके नामसे नहीं था ।