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२३७. टिप्पणियाँ

[ जोहानिसबर्ग
मई ३१, १९०३ ]

३० मई, १९०३ को समाप्त होनेवाले सप्ताहतककी स्थितिपर टिप्पणियाँ

पहलेकी टिप्पणियोंमें उस ब्रिटिश भारतीय शिष्ट-मण्डलका उल्लेख किया जा चुका है, जो लॉर्ड मिलनरसे मिला था। इसकी सरकारी कार्यवाही पत्रोंमें छप चुकी है । कतरन इसके साथ नत्थी है। सचाईके साथ यह आशा करनी चाहिए कि नये कानूनमें, जो विचाराधीन है, कोई वर्ग-भेद न किया जायेगा ।

ऑरेंज रिवर उपनिवेश

इस उपनिवेशके सम्बन्धमें, जहाँ भारतीयोंका प्रवेश व्यवहारतः सर्वथा वर्जित है, कुछ-न- कुछ करनेका समय अब आ गया है। जब उपनिवेशमें पुरानी सरकार थी, वहाँसे बहुतसे लोग निकाल दिये गये थे । वह एक स्वतन्त्र गणराज्य था, इसलिए तब ब्रिटिश सरकार कोई सहायता न दे सकी थी। क्या अब उन लोगोंको वहाँ बहाल नहीं कर देना चाहिए ?

सैनिक शासनमें कानूनमें परिवर्तन होनेके कुछ लक्षण दिखाई देते थे; किन्तु अब तो स्थिति अधिकाधिक गम्भीर होती जाती है । निवेदन है कि यह मामला अलग-अलग लॉर्ड जॉर्ज हैमिल्टन और श्री चेम्बरलेनके ध्यानमें लाना चाहिए। उपनिवेशकी विधानसभाने म्यूनिसिपल मताधिकारमें रंगभेद दाखिल करके रंगगत कानूनके सिद्धान्तकी प्रतिष्ठा प्रारम्भ कर दी है । ऐसा ट्रान्सवालमें नहीं है।

केप उपनिवेश

ब्रिटिश भारतीयों की सभाकी संलग्न रिपोर्ट[१]से यहाँकी स्थिति पर्याप्त रूपमें स्पष्ट हो जाती है ।

ईस्ट लंदनके भारतीयोंकी कष्ट-कहानीसे मित्रगण परिचित हो ही चुके हैं।

जैसा कि रिपोर्टसे विदित होगा, ट्रान्सवालने बाजारों की स्थापना करके जो मार्ग दिखाया है, उसका अनुसरण केपमें भी किया जा रहा है ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडिया ऑफ़िस : ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ४०२ ।

  1. यह उपलब्ध नहीं है ।