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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

होना आवश्यक नहीं बताया गया है। इसका परिणाम यह होता है कि हिन्दुस्तानियोंके लिए प्रवेशका दरवाजा एकदम बन्द कर दिया गया है । फिर नेटालके कानून[१]के खिलाफ जो बातें कही जा सकती हैं वे सब दोष इसमें भी हैं। हम हृदयसे आशा करते हैं कि विधानसभाके अगले अधिवेशनमें उसके मुख्य उद्देश्यको कायम रखते हुए भारतीयों द्वारा प्रकट की गई उचित आपत्तियोंका आदर करके कानूनमें आवश्यक सुधार कर दिये जायेंगे। सच तो यह है कि मन्त्रियोंने यह आश्वासन भी दिया है कि अभी विधेयक जल्दीमें रखा जा रहा है; सरकार अगले अधिवेशनमें उसमें आवश्यक सुधार करनेके लिए तैयार है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-६-१९०३


२४४. कथनी और करनी

इस सुन्दर उपनिवेशके उदारमना प्रधानमन्त्री[२] नेटालकी नगरपालिकाओंके समक्ष ट्रान्सवाल-सरकारकी बाजार-सम्बन्धी सूचनाओंके बारेमें भाषण दें और इस तरह उनको भी वैसी ही कार्रवाई करनेके लिए प्रभावित करें, यह हमारे लिए पीड़ाजनक आश्चर्यकी बात है। सर आल्बर्ट नगरपालिकाओंसे क्या कराना चाहते हैं? उनके हाथोंमें तो पहलेसे ही असीम सत्ता मोजूद है। बहुत कम नये परवाने जारी किये गये हैं । तब सर आल्बर्ट बाजारोंमें बसने के लिए किन लोगोंको भेजेंगे ? जो लोग पहले ही बस गये हैं, निःसन्देह उन्हें तो नहीं भेजेंगे । क्योंकि, ट्रान्सवालकी सूचनाओंका असर ऐसे लोगोंवर नहीं होता । साम्राज्यकी भलाईके लिए श्री चेम्बरलेनने पिछले दिनों दक्षिण आफ्रिकाकी जो यात्रा की थी उसपर हमारे बहादुर प्रधानमन्त्रीकी यह कृति एक अजीब टिप्पणी है । इस देशमें श्री चेम्बरलेनके जो अस्सी भाषण हुए उनमें साम्राज्य की भावना और साम्राज्यकी एकता इन्हीं दो बातोंपर उन माननीय महानुभावने मुख्यतः जोर दिया था। भारतीयोंके बारेमें बोलते हुए उन्होंने यह नियम बताया था : "जो पहलेसे ही बस गये हैं वे न्याय और सम्मानपूर्ण व्यवहारके अधिआरी हैं।" भारतीयोंको जबरन बाजारों या, साफ शब्दोंमें, पृथक् बस्तियोंमें भेज देना न्याययुक्त और सम्मानपूर्ण नहीं कहा जा सकेगा । सोचा तो यह जाता था कि प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम और विक्रेता-परवाना अधिनियम जैसे कठोर कानून बना देनेके बाद अब तो भारतीयोंको कमसे-कम साँस लेनेका अवसर मिलेगा । परन्तु देखा जाता है कि सर्वशक्तिमानकी इच्छा दूसरी ही है ।

(ऊपर लिखा मजमून छपनेके लिए देनेके बाद उनकी नगरपालिकाकी बैठकमें उसके मेयरने जो तजवीज पेश की है उसे पढ़कर हमें बहुत सदमा पहुँचा है। यह तजवीज हम अन्यत्र[३] ज्यों-की-त्यों प्रकाशित कर रहे हैं। इसपर हमारे विचार पाठक अगले अंक में पढ़ें[४] ) ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-६-१९०३
  1. देखिए खण्ड २, १४३७९-८३ ।
  2. सर आल्बर्ट एच० हाइम, प्रधानमन्त्री, १८९९-१९०३ ।
  3. देखिए अगला शीर्षक ।
  4. देखिए "बाघ और मेमना", ११-६-१९०३ ।