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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

कारण स्वास्थ्य और सफाईके लिए आवश्यक व्यवस्था करनेमें बढ़ी कठिनाइयाँ सामने आई हैं । यदि नगरमें बसे तमाम भारतीयोंके लिए एक निर्दिष्ट स्थानमें रहना आवश्यक कर दिया जाये तो ये कठिनाइयाँ बहुत हदतक काबूमें आ जायेंगी। मुझे एशियाई मुहल्ला बसानेके लिए आसपास एक उपयुक्त स्थान चुन लेनेमें कोई गम्भीर मुसीबत दिखलाई नहीं पड़ती ।

वेस्ट स्ट्रीट, स्मिथ स्ट्रीट, पाइन स्ट्रीट, कमर्शियल रोड और रेलवे स्ट्रीटमें तथा अन्यत्र मकानों और दूकानोंके एशियाई स्वामियोंके उन परवानोंमें कोई निहित अधिकार नहीं है, जिनके अन्तर्गत वे व्यापार करते हैं, क्योंकि अच्छे और पर्याप्त कारण मौजूद होनेपर ये और अन्य परवाने किसी भी निर्दिष्ट वर्षके अन्तमें नये नहीं भी किये जा सकते । इसलिए यदि भारतीयोंके व्यापार तथा निवासके स्थान अबकी तरह समस्त नगरमें छितरे होने के बजाय एक विशेष क्षेत्रमें एकत्र कर दिये जायें तो इससे उनको कठिनाई होनी तो दूर, उलटे लाभ ही होगा । वर्तमान परवाने तुरन्त रद करना कुछ कठोरता हो सकती है; किन्तु वर्तमान परवानेदारोंको अपने अधिकृत मकानों दुकानोंके ही परवाने जीवनभर रखने की अनुमति दे देनेमें, मेरा खयाल है, उनके साथ न्याय हो सकता है। बेशक, शर्त यह होगी कि वे स्थान बिल्कुल साफ रखे जायें । परन्तु वर्तमान परवाने अन्य भारतीयोंको किसी भी अवस्थामें हस्तान्तरित न किये जाने चाहिए और इस उद्देश्यकी पूर्तिके लिए नगरके समस्त भारतीयोंका बाकायदा रजिस्टर रखना आवश्यक होगा ।

इस मामलेपर सावधानीसे विचार करनेके बाद मुझे ऐसा लगता है कि अब समय आ गया है जब कि इस परिषदको ट्रान्सवालमें लागू कानूनोंसे कुछ मिलते-जुलते आधारोंपर एक कानून बनाने का प्रार्थनापत्र सरकारको भेजना चाहिए, जिससे डर्बनके ही नहीं, बल्कि समस्त उपनिवेशके स्वास्थ्य और व्यापार-सम्बन्धी हितोंकी रक्षा की जा सके। मैं अनुरोध करता हूँ कि अब इस सम्बन्धमें सरकारसे प्रार्थना करनेमें विलम्ब न किया जाना चाहिए, क्योंकि यह आशा की जाती है कि ट्रान्सवालके नये कानूनोंके फल-स्वरूप एशियाइयोंको उस उपनिवेशको छोड़कर नेटाल आनेफा प्रोत्साहन मिलेगा, जहाँ वर्तमान अवस्थाओंमें वे नगर के किसी भी भागमें, जहाँ चाहें वहाँ, अपना व्यवसाय चला सकते हैं और रह सकते हैं। यदि सरकार एशियाइयोंसे व्यवहारकी विधिके सम्बन्धमें नेटालको ट्रान्सवालके समान आधारपर रखनेके लिए आवश्यक कानून बनाना स्वीकार कर ले, तो विधेयकमें क्या-क्या व्यवस्था हो, इस सम्बन्धमें मेरे सुझाव ये हैं :

१. ट्रान्सवालके सन् १८८५के तीसरे कानूनमें एशियाइयोंके पंजीकरणके सम्बन्धमें जैसी व्यवस्था है उसी तरीकेकी व्यवस्था नेटालके नगरों और कस्बोंमें रखी जाये ।

२. नगरपालिका अधिकारी पृथक एशियाई बाजार ( या वस्तियाँ) बनायें। इनमें ऐसे सभी एशियाई रहें जो यूरोपीयोंकी घरेलू नौकरीमें न हों; अथवा जो सरकार, निगमों (कारपोरेशन्स) या व्यापारिक पेढ़ियोंके भी, जो उनके रहनेके लिए बारकोंकी उपयुक्त व्यवस्था करती हों, कर्मचारी न हों ।

३. इन बाजारोंमें व्यवसाय चलानेके अतिरिक्त एशियाइयोंको नये परवाने न दिये जायें।

४. एशियाइयोंके पास इस समय जो परवाने हैं, उन्हें दूसरे एशियाइयोंके नाम हस्तान्तरित न किया जाये; बल्कि वर्तमान परवानेदार की मृत्युके पश्चात् रद कर दिया जाये ।

५. किसी भी एशियाईको उससे अधिक परवाने न रखने दिये जायें, जितने इस विधेयकके लागू होनेकी तारीखको उसके पास हों ।

६. जो एशियाई उपनिवेश-मन्त्रीको सन्तोष दिला दे और यह सिद्ध कर दे कि उसने इस देशके या किसी अन्य ब्रिटिश उपनिवेश या अधीनस्थ देशके शिक्षा-विभागसे उच्च शिक्षाका प्रमाणपत्र प्राप्त किया है, या वह उस तरीकेका जीवन व्यतीत कर सकता है या करनेके लिए सहमत है, जो यूरोपीय विचारोंके प्रतिकूल न हो, और न स्वास्थ्य-नियमोंके प्रतिकूल हो, तो वह उपनिवेश-सचिवको अपवादपत्रके लिए अर्जी दे सकता है । इस पत्रकी उपलब्धिपर वह एशियाइयोंके लिए विशेष रूपसे निर्दिष्ट स्थानके अतिरिक्त किसी भी स्थानमें रह सकता है ।

इन आधारोंपर बनाये गये कानूनके फलस्वरूप एशियाई व्यवसाय हमारे मुल्य बाजारोंसे एकाएक नहीं हटेगा, किन्तु अतिरिक्त परवाने न दिये जा सकेंगे; और यदि हम वतनियोंकी बस्तियोंके साथ-साथ सब एशियाइयोंको ( उनके व्यापार-स्थान कहीं भी क्यों न हो ) इन बाजारोंमें रहनेके लिए विवश कर सकें, तो