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३०८. भ्रम निवारक

श्री मूअरकी रिपोर्ट

ट्रान्सवालके सहायक उपनिवेश-सचिव श्री मूअरकी रिपोर्ट हम अन्यत्र दे रहे हैं। ब्रिटिश भारतीयोंके लिए वह एक स्थायी महत्त्वकी वस्तु है, क्योंकि उसमें सन् १९०२ की ३१ दिसम्बरको और उस दिनतक ब्रिटिश भारतीयोंकी जो स्थिति थी उसे सारांशमें बताया गया है। यद्यपि स्थिति तबसे बहुत बदल गई है फिर भी उस रिपोर्टसे सरकारके इरादोंकी अच्छी-खासी कल्पना होती है । कमसे-कम एक बातमें सरकारने अपना रुख भारतीयोंके बहुत विरुद्ध कर लिया है। हमारा मतलब ३ पौंडी पंजीकरण-नियमको लागू करनेसे है। आलोच्य रिपोर्टमें श्री मूअर कहते हैं कि यह ३ पौंडी पंजीकरण-नियम लागू नहीं किया जायेगा; किन्तु इसे अधिकतम सख्तीके साथ कार्यान्वित किया गया है। बहुतसे लोगोंपर मामले दायर कर दिये गये हैं। और कुछ लोगोंपर, जिन्होंने पंजीकरण नहीं कराया, जुर्माने हो गये हैं ।

श्री मूअरने लिखा है कि पिछली हुकूमतकी कार्यकारिणीके प्रस्ताव ११०१ में ज्ञापित किया गया है कि वह सन् १८८५ के कानून ३ पर अमल करेगी; तदनुसार लड़ाईके पहलेतक उसका बराबर अमल हो रहा था; किन्तु जब ब्रिटिश भारतीय उपनिवेशसे चले गये तब उसके अमलका कोई कारण नहीं रहा । श्री मूअरके इस कथनमें हम एक सुधार करना चाहते हैं । निःसन्देह यह सच है कि उसपर अमल करनेका प्रयत्न हुआ था, परन्तु तत्कालीन ब्रिटिश एजेंट और उप-राजप्रतिनिधिने हस्तक्षेप किया। फलतः आगे कोई कार्यवाही नहीं हुई। और जब बोअर-सरकारसे विभिन्न जिला मजिस्ट्रेटोंकी जारी की गई विज्ञप्तिके बारेमें पूछा गया तो ब्रिटिश एजेंटने यह आश्वासन पाया कि उस कानूनपर अमल नहीं किया जायेगा। एक भी भारतीय कभी बस्तियोंमें जानेपर मजबूर नहीं किया गया और न किसीको बस्तियोंके बाहर व्यापार करनेसे रोका गया।

भारतीयोंके रहनेके विषयमें यूरोपीयोंकी आपत्तियोंका जो सार श्री मूअरने दिया है उसमें भी वस्तुस्थितिके ज्ञानकी वही कमी है जिसका विवरण ब्रिटिश भारतीय दे चुके हैं। इसलिए हम फिलहाल उनके बारेमें कुछ नहीं कहेंगे ।

श्री मूअरके प्रति समुचित आदर प्रकट करते हुए हम कहेंगे कि श्री मूअर भी वही गलती कर रहे हैं जो आम लोग करते हैं। वे भारतीय मजदूरोंके प्रवास और उन लोगोंके आनेमें कोई अन्तर नहीं करते जो ट्रान्सवालमें स्वतन्त्र लोगोंकी हैसियतसे अपने खर्चसे आना चाहते हैं । स्पष्ट है कि इसी प्रकार वे नेटालके गिरमिटिया प्रवासी अधिनियमको स्वतन्त्र रूपसे आये हुए भारतीयोंपर भी लागू मानकर इस मान्यताके अनुसार एक ऐसा नया कानून बनानेकी बात सुझाते हैं जो दक्षिण आफ्रिकाके अन्य उपनिवेशोंमें बने कानूनोंके समान हो । किसी अन्य आधारपर उनका प्रस्ताव समझमें नहीं आ सकता, क्योंकि उसमें वे सुझाते हैं कि (प्रथमतः) अनुमतिपत्र उन्हीं भारतीयोंको दिये जायें जो किसी जिम्मेदार मालिकका शर्तनामा पेश करें, (दूसरे) वे ५ पौंड फी आदमीके हिसाबसे पंजीकरण-शुल्क जमा करायें, और (तीसरे) उनके आवागमनपर नियन्त्रण रखा जा सके, इस हेतु हर आदमी एक-एक शिलिंग देकर पास निकलवा ले। पहले सुझावमें यह मान लिया गया है कि हर एशियाई ट्रान्सवालमें एक गिरमिटिया मजदूरकी हैसियतसे ही आ सकता है । ५ पौंड जमा करानेवाले सुझावमें, मालूम होता है, हेतु नेटालके उस कानूनका