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३०९. ग्रेटाउनका स्थानिक निकाय

ग्रेटाउनका स्थानिक निकाय (लोकल बोर्ड) इस आशंकासे बड़ा परेशान है कि हाल ही में जिस जमीनकी बिक्री खोली जानेवाली है, उसे कहीं कोई भारतीय न खरीद ले, या पट्टेपर न ले ले। उसने इसमें सरकारसे संरक्षण चाहा है। जवाबमें मुख्य उप-सचिवने लिखा है कि मामला परमश्रेष्ठ गवर्नरकी सेवामें पेश कर दिया है और उन्होंने कागजात श्री चेम्बरलेनके विचारार्थ भेज दिये हैं। निकायके एक सदस्य श्री मीकका कथन है कि “जवाबकी राह देखते हुए मामलेको अगले सालतक लटकाये रखना दिक्कतकी बात है।" निकायने कह दिया सो कह दिया। उसपर तुरन्त अमल होना चाहिए। लिखा है: "प्रारम्भमें [ भगवानने ] कहा, प्रकाश हो जाये, और प्रकाश हो गया ।" इसी प्रकार अब ग्रेटाउन स्थानिक निकाय ब्रिटिश भारतीयोंके बारेमें फरमान देगा, और कौन है जो उस पर 'ना' कहे ! सचमुच हम समझ नहीं पाते कि जब भारतीयोंका सवाल होता है तो हमेशा अनुचित रास्ता ही क्यों सुझाया जाता है। पहले तो, हम नहीं समझते, ग्रेटाउनके रिहायशी क्षेत्रमें किसी भारतीयके जमीन खरीदनेका कोई खतरा है । दूसरे यदि वह उपनियमों और आसपासके मकानोंके अनुरूप वहाँ कोई चीज खड़ी करता है तो इसमें दूसरोंको आपत्ति क्या है ? दूसरोंकी भाँति नियमोंका पालन उससे अवश्य कराया जाये । किन्तु यदि भारतीयोंकी भावनाका थोड़ा-सा भी खयाल रख लिया जाता तो यह सारी कठोरता चली जाती और उपनिवेशियोंको भारतीयोंकी मौजूदगीसे किसी तरहकी असुविधाका खतरा भी न उठाना पड़ता ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १३-८-१९०३

३१०. आखिरी जवाब

बॉक्सबर्गके स्वास्थ्य-निकायने अपने नगरकी भारतीय बस्तीको वन ट्री हिल [ एक पेड़वाली टेकरी] पर ले जानेका जो प्रस्ताव किया है उसे लेकर श्री मूअर और स्वास्थ्य-निकायके बीच झगड़ा हो रहा है। इस सम्बन्धमें हमारी टिप्पणी उद्धृत करके और उसका उत्तर देकर ईस्ट रैंड एक्सप्रेसने हमें सम्मानित किया है। हमारे सहयोगीका मन्तव्य है, ऐसा कह कर कि बस्तियों की जगहें केवल सरकार ही निश्चित कर सकती है, हमने जरूरतसे ज्यादा वकालत की है । धृष्टता क्षमा हो, हमने ऐसा कुछ नहीं किया है। अपने सहयोगीको हम याद दिलाना चाहते हैं कि यह सरकारी विज्ञप्ति घोषणा भी नहीं है । वह केवल सरकारके ट्रान्सवालके एशियाई-विरोधी कानूनपर अमल करनेके इरादेको प्रकट करती है, और इस कानूनका किस तरह और किस हदतक पालन हो इस सम्बन्धमें कुछ नियम निर्धारित करती है। हमारे सहयोगीको इतना ज्ञान तो होना चाहिए कि सरकार उस कानूनमें कुछ कम-ज्यादा नहीं कर सकती, केवल विधान-परिषद ऐसा कर सकती है। अब, कानून कहता है: “सरकारको यह अधिकार होगा कि वह उनके रहनेके लिए खास मार्ग, मुहल्ले या बस्तियाँ निश्चित कर दे।" इसलिए कानूनके अन्तर्गत नगर परिषदों और स्वास्थ्य निकायोंको कोई रक्षित सत्ता नहीं दी गई है। इससे स्पष्ट है कि