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३१६. ट्रान्सवालमें भारतीय व्यापारिक परवाने

जोहानिसबर्ग
अगस्त २२, १९०३

लॉर्ड मिलनरने ११ मईको जो खरीता उपनिवेश-मन्त्रीको भेजा था वह इस सप्ताहकी डासे यहाँ आ गया है। परमश्रेष्ठने भारतीयोंके साथ जो सहानुभूति प्रकट की है और उनकी भावनाओंका जो आदर किया है उसके लिए भारतीय उनके कृतज्ञ हैं । परन्तु उसमें कुछ बातें ऐसी कही गई हैं जिनमें सुधार कर देनेकी आवश्यकता है। प्रतीत होता है कि ये बातें श्वेत संघ (व्हाइट लीग) के सदस्यों द्वारा बार-बार जोर दिया जानेके कारण कही गई हैं। परमश्रेष्ठने अपने खरीतेमें कहा है :

लड़ाईसे पहले जो एशियाई लोग उपनिवेशमें थे केवल उन्हींका सवाल होता तो महामहिमकी सरकारके मनके लायक नये कानून बननेतक हम राह देख सकते थे । परन्तु यहाँ तो नये-नये आनेवालोंका ताँता लगा रहता है और वे व्यापार करनेके परवाने माँगते रहते हैं। और, यूरोपीय लोग बिना सोचे-समझे परवाने देते जाने और एशियाइयोंको उनके लिए ही विशेष रूपसे पृथक् बनाई गई बस्तियोंतक सीमित रखनेका कानून लागू करनेमें सरकारकी लापरवाहीके विरुद्ध निरन्तर प्रतिवाद और अधिकाधिक तीव्र रोष प्रकट कर रहे हैं। ऐसी दशामें एकदम खामोश बैठे रहना असम्भव हो गया है ।

निवेदन है कि एशियाइयोंकी आबादी आज भी युद्धसे पहलेकी अपेक्षा कम है। एशियाइयोंका पंजीकरण करनेका कानून लागू हो चुका है और उसके परिणामोंसे प्रकट होता है कि इस समय इस उपनिवेशमें १०,००० से अधिक एशियाई नहीं हैं। सरकार द्वारा प्रकाशित सरकारी विवरणसे पता चलता है कि युद्धसे पहले कमसे-कम १५,००० ब्रिटिश भारतीय तो इस उपनिवेशमें थे ही। ये दोनों बयान सरकारी हैं। इसके अतिरिक्त, परवाने देनेके नियमोंकी कठोरताके कारण ब्रिटिश भारतीय शरणार्थियोंके अतिरिक्त कोई भी ट्रान्सवालमें प्रविष्ट नहीं हो सकता । इसलिए यह कहना किसी भी प्रकार सत्य नहीं हो सकता कि कानून लागू करनेकी आवश्यकता इस कारण हो गई कि "बहुतसे नये-नये आदमी यहाँ उमड़े चले आ रहे और व्यापार करनेके परवानोंके लिए प्रार्थनापत्र देते जा रहे हैं।" इसके अतिरिक्त, बाजार-सम्बन्धी सूचना केवल नये परवानोंका प्रार्थनापत्र देनेवालोंके लिए नहीं, सभीके लिए है; उनके पास युद्धसे पहले परवाने थे या नहीं -- इसमें अपवाद कुछ ही अवस्थाओंके लिए किया गया है। यदि सरकार अशरणार्थियों को परवाने देनेसे इनकार कर देती तो शिकायतकी कोई बात न होती, परन्तु अब तो साराका सारा कानून अभीष्ट शरणार्थियों के विरुद्ध लागू किया जा रहा है। परमश्रेष्ठने लिखा है :

परन्तु सरकार इस बातकी चिन्तामें है कि वह इस कामको (कानूनके अमलको) देशमें पहलेसे बसे हुए भारतीयोंका बहुत खयाल रखते हुए और निहित स्वार्थोके प्रति -- जहाँ इन्हें कानूनके विरुद्ध भी विकसित होने दिया गया है -- सबसे अधिक खयाल रखते हुए करे ।