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अनुमतिपत्र और गैर-शरणार्थी

आशा छोड़ दें। निःसन्देह यह जवाब प्रार्थियोंके लिए बड़ा अन्यायपूर्ण होगा, परन्तु वह कमसे-कम सच तो होगा। और आज शरणार्थी जिस दुविधामें लटक रहे हैं वह तो दूर हो जायेगी । अगर उन्हें लौटनेकी माँग करनेका अधिकार नहीं है तो कमसे-कम अपनी वास्तविक अच्छी-बुरी स्थिति जाननेका अधिकार तो है और हम आशा करते हैं कि ट्रान्सवालकी सरकार इस विषयमें कोई निश्चित जवाब देनेका रास्ता निकाल लेगी जिससे वे जान जायें कि वे कहाँ हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २०-८-१९०३

३१५. अनुमतिपत्र और गैर-शरणार्थी

प्लेग-सम्बन्धी रुकावटके बारेमें हम एक बार फिर बता दें कि सारे दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीय शरणार्थियोंको अनुमतिपत्र देनेपर कड़ी रोकें लगी हुई हैं और गैर-शरणार्थी भारतीयोंको तो अनुमतिपत्र देनेकी एकदम मुमानियत है। सप्ताहभरमें केवल ७० प्रामाणिक शरणार्थियोंको अनुमतिपत्रोंका दिया जाना बहुत ही कम है। जैसा कि विधानसभाको उपनिवेश-सचिवने बताया, दक्षिण आफ्रिकाके प्राथियोंके कुछ हजार प्रार्थनापत्र अभी अनिर्णीत ही पड़े हुए हैं। इसमें उन सैकड़ों भारतीयोंको नहीं गिना गया है, जो अभी भारतमें ही हैं और जो अभी, किसी-न-किसी कारण, दक्षिण आफ्रिका नहीं लौट सके हैं। उन शरणार्थियोंको इस तरह इक्का-दुक्का क्यों, पूरी तरह क्यों नहीं लौटने दिया जा रहा है, इसका कारण हम समझ नहीं पा रहे हैं। उन्हें लौटनेका हक है, इससे तो किसीको इनकार नहीं है। यदि सबको तुरन्त न लौटने देनेका कारण यह हो कि उपनिवेशमें भीड़ हो जायेगी और ये भारतीय वहाँ अपना गुजारा नहीं कर सकेंगे, तो हम कहेंगे कि यह आपत्ति निःसन्देह उचित है । परन्तु इस बुराईका उपाय है, और वह बड़ा सुरक्षित उपाय है। प्रत्येक शरणार्थी भारतीयसे इस बातकी एक विश्वसनीय जमानत माँगी जा सकती है कि ट्रान्सवालमें उसके लौटनेपर वह न केवल अपने रहनेके लिए रहने योग्य मकान ढूँढ लेगा, बल्कि अगर जरूरत पैदा हुई तो उसका निर्वाह खर्च देनेवाले उसके मित्र भी वहाँ हैं । तब न तो भीड़का और न उसके भूखों मरनेका डर रहेगा। गैर-शरणार्थियोंकी मुमानियत भी हमारे खयालसे बहुत अनुचित है । इससे भारतीय व्यापारियोंको बड़ी असुविधा होगी जिन्हें सहायकों, बेचनेवालों और नौकरोंकी जरूरत पड़ सकती है। यह मुमानियत खुद उन शरणार्थियोंके लिए अत्यन्त अन्याययुक्त है, जिनको ट्रान्सवाल लौटकर किसी तरह अपनी रोजी कमानेसे रोक दिया गया है। हमारा कथन यह कदापि नहीं कि सब नये आनेवालोंको ट्रान्सवालमें अनियन्त्रित आने दिया जाये । परन्तु हम यह जरूर कहना चाहते हैं कि जिनको वास्तवमें कामका आश्वासन मिला है, उन्हें अपना काम सँभालनेसे रोका न जाये। इसलिए हम आशा करते हैं कि इस प्रश्नपर भी ट्रान्सवालकी सरकार सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २०-८-१९०३