गिरमिटिया मजदूर ४७१ अधिक सफल होते । परन्तु उन्होंने यह जरूरी समझा कि सबसे पहले अपने भाइयोंको उठायें और उन्हें आनेवाले महान कार्योंके लिए तैयार करें। इस तरह अपने साथ-साथ उन्होंने अपने देशभाइयोंको इतना ऊँचा उठा दिया कि जिसका कोई माप नहीं किया जा सकता; और उनके तथा हम सबके सामने, जो-जो भी उनके जीवनसे कुछ सीखना चाहें, एक अनुकरणीय उदाहरण पेश कर दिया । अपने देशभाइयोंसे, अन्तमें, हम केवल एक बात और कहेंगे । हमारे देशमें भी ऐसे कई पुरुष हैं, जिन्होंने अपना समस्त जीवन देशको समर्पित कर दिया है। परन्तु हमें कहना पड़ता है कि इस पुरुषका जीवन ऐसे प्रत्येक ब्रिटिश भारतीयसे बढ़ जाता है । और उसका कारण केवल एक ही है- • यह कि, हमारा अतीत अत्यन्त महान और हमारी सभ्यता प्राचीन है । इसलिए हमारे लिए जो बात स्वाभाविक मानी जाती है, और है भी, वह बुकर टी० वाशिंगटनके लिए बहुत बड़ी योग्यताकी बन जाती है। जो हो, इस प्रकारके चरित्रोंका चिंतन सदा हितकर ही होता है । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, १०-९-१९०३ - ३३२. गिरमिटिया मजदूर विधान परिषद में माननीय श्री जेमिसनके प्रश्नका जवाब देते हुए प्रधानमन्त्रीने बताया कि गिरमिटिया भारतीयोंको अनिवार्यतः स्वदेश भेजनेके प्रश्नसे सम्बन्धित कागजात गोपनीय हैं; इसलिए उन्हें प्रकाशित नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि इस विषयमें अभी लिखा-पढ़ी जारी है। इस कथनसे प्रकट होता है कि भारत सरकारने मजदूरोंको अनिवार्य रूपसे स्वदेश लौटानेवाली धारापर अभी अपनी मंजूरी नहीं दी है । अगर ऐसी बात है तो पिछले अंकमें हमने श्री चेम्बरलेनकी जो बात छापी थी वह शायद पक्की नहीं थी और वह अधूरी जानकारीके आधारपर कही गई थी। साथ ही यह भी निःसन्देह सही है कि नेटालके प्रतिनिधियों द्वारा पेश किये गये इस प्रस्तावके प्रति भारत सरकारने अवश्य ही सहानुभूति प्रकट की है। हम तो यही आशा कर सकते हैं कि भारत और इंग्लैंडका लोकमत भी मजदूरोंके लिए बनाये गये शर्तनामे में कोई ऐसी धारा जोड़ना असम्भव बना देगा, जो सरासर अन्याययुक्त और अनुचित हो । स्वर्गीय श्री सॉडर्सने कहा था : इन गरीब आदमियोंको यहाँ लायें, उनकी सारी शक्तिका दोहन कर लें और फिर उन्हें वापस स्वदेश लौटा दें, इससे अधिक अच्छा तो यही है। कि उन्हें यहाँ लायें ही नहीं । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, १०-९-१९०३ १. प्रवासी आयोग (इमिग्रेशन कमिशन ) की रिपोर्ट; देखिए खण्ड १, ५४ २२५-६ । Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५१३
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