-- ३३३. ऑरेंज रिवर कालोनी - 1 श्री फ्रान्सिस लाजारस नामक डर्बनमें पैदा हुए २७ वर्षीय भारतीयने ब्लूमफ़ाँटीनके रेजि- डेंट मजिस्ट्रेटसे प्रार्थना की है कि उन्हें ऑरेंज नदीके पवित्र उपनिवेशमें बसनेकी और वहाँ एक फोटोग्राफरके सहायकका काम करनेकी अनुमति दी जाये । इसपर ब्लूमफ़ाँटीनके निवासियोंको सूचित किया गया है कि अगर उन्हें इसपर कोई आपत्ति हो तो वे अपना विरोध इस सूचनाके प्रकाशित होनेके तीस दिनके अन्दर उनकी अदालत में पेश कर दें। इस अवधिके बाद मजिस्ट्रेट उस प्रार्थनापत्रको राज्यके अध्यक्ष -- इस समय लेफ्टिनेंट गवर्नर की सेवामें भेज देंगे। वे या तो उसको मंजूर करके अर्जदारको उपनिवेशमें बसनेकी मंजूरी दे देंगे या उस सम्बन्धमें आव- श्यक जाँच करनेकी आज्ञा प्रदान कर देंगे । क्योंकि, राज्यके अन्दर बसनेकी अनुमति मिलना ऐसा ही एक महत्त्वपूर्ण विशेषाधिकार है; और अगर अर्जदारको अनुमति मिल गई तो वह उस उप- निवेशका जिसे व्यर्थ ही ब्रिटिश कहा जाता है. गर्वीला निवासी बन जायेगा । हम बता दें कि इस सारी लम्बी-चौड़ी कार्रवाईका परिणाम यह होगा कि वह आदमी राज्यमें केवल रह सकेगा, अर्थात् उसे कोई जायदाद रखने, व्यापार करने और खेती करनेका अधिकार न होगा । और अगर अर्जदार घरमें सेवा टहल करनेवाला नौकर नहीं है और अपने गोरे मालिकके साथ नहीं रहता है, तो स्वभावतः उसे बस्तियोंमें ही रहना होगा। जब लड़ाई छिड़ी तब हम उन लोगों में से थे जिन्होंने शंकाशील भारतीयोंको आश्वासन दिया था कि लड़ाई समाप्त होते ही दोनों उपनिवेशोंमें रहनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंकी कैदें और वन्दिशें खत्म हो जायेंगी; और जब हम उन्हें बताते थे कि, देखिए, लड़ाईके कारणों में से एक आपपर लादी गई बन्दिशें भी एक कारण हैं, और अगर लड़ाईमें अंग्रेजोंकी जीत हुई तो आपकी बन्दिरों भी जरूर हटेंगी, तो उनका समाधान हो जाता था । परन्तु कमसे कम अभी कुछ समयके लिए तो शंकाशीलोंकी आशंकाएँ सही साबित हुईं और दोनों उपनिवेशोंमें एशियाई -विरोधी कानून हमारे देशभाइयोंपर भयंकर अत्याचार ढा रहा है। श्री चेम्बरलेनकी नींद कब टूटेगी ? [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, १०-९-१९०३ ३३४. पाँचेफस्ट्रम पीछा नहीं छोड़ेगा ? मालूम होता है, पाँचेफस्ट्रमके व्यापार-संघ ( चेम्बर ऑफ़ कॉमर्स) को उस नगरके ब्रिटिश भारतीय व्यापारियोंसे बहुत डाह है। हाल ही में कुछ फेरीवालोंपर निवासके बारेमें कुछ मुकदमे चलाये गये थे । उनमें मजिस्ट्रेटने जो फैसला दिया उससे असंतुष्ट होकर अब उसने इस तरहके सबूत इकट्ठे करनेका निश्चय किया है कि पुरानी सरकारने भारतीयोंके लिए अलग वस्तियाँ मुकर्रर की थीं या नहीं, और इसीलिए पुराने कागजातको जाँच करनेकी अनुमतिकी उसने माँग की है। इस सम्बन्धमें रैंड डेली मेलसे हम एक विवरण अन्यत्र छाप रहे हैं। अगर वह सही है तो कहना होगा कि पॉचेफस्ट्रमका व्यापार-संघ बॉक्सबर्गके सज्जनोंसे भी एक कदम आगे बढ़ गया है। व्यापार-संघके रुखसै स्पष्ट दिखाई देता है कि मजिस्ट्रेटके फैसलेपर उसे विश्वास Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५१४
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