मजदूरोंकी जबरन वापसी ४७७ उसपर विचार करते हुए प्रतिनिधियों द्वारा २० जनवरी १८९४ को अपने स्मृतिपत्रमें लिखे प्रस्तावकी क से च तककी धाराओंको अपनी मान्यता देनेके लिए में तैयार हूँ; परन्तु उसके साथ ये शर्तें होंगी -- (क) भरतीके समय अपने गिरमिटकी शर्तों के अनुसार अगर कोई कुली अपने गिरमिटकी मियाद पूरी होनेपर पुनः उन्हीं शर्तोंपर अपने आपको बाँधना न चाहे तो वह गिरमिट पूरा होनेसे पहले या पूरा होते ही तुरन्त भारत लौट जायेगा । (ख) जो कुली लौटनेसे इनकार करें उन्हें किसी भी अवस्था में कानूनी सजा नहीं दी जायेगी । (ग) गिरमिटोंकी सब नई मियादें दो वर्षकी होंगी । प्रवासीको अपने गिरमिटकी पहली मियादके अन्तमें और बाद नये किये गये हर गिर- मिटके अन्तमें मुफ्त टिकट दिया जायेगा । हम देखते हैं कि लॉर्ड एलगिनके सुझावके अनुसार जो लोग भारत नहीं लौटना चाहते थे अथवा नया गिरमिट भी नहीं लिखना चाहते थे उनपर ३ पौंडका कर लगा दिया गया । आज कानूनी स्थिति यह है । जब यह कानून मंजूर हुआ था तब यह अपेक्षा थी कि लॉर्ड एलगिनने जो कुछ उचित समझकर किया उससे आगे भारत सरकार नहीं बढ़ेगी। कहा जाता है लॉर्ड कर्ज़न बेजोड़ संकल्पशक्ति और अपने उद्देश्यके पक्के पुरुष हैं। इसके अतिरिक्त अपने रक्षितोंके हितोंकी रक्षा भी वे करना चाहते हैं। श्री ब्रॉड्रिकके दक्षिण आफ्रिकी सेनाके खर्चमें भारत द्वारा हिस्सा बँटानेके प्रस्तावके सम्बन्धमें उन्होंने इन सब गुणोंका परिचय दिया है। इस बार जरूर मूक मजदूरोंके हितोंकी रक्षाका प्रश्न है; परन्तु हमें पूरी आशा है कि इनकी रक्षाके लिए भी वे कम उत्सुक नहीं होंगे । ट्रान्सवालके लिए १०,००० गिरमिटिया मजदूर उपलब्ध करनेके प्रस्तावके सम्बन्धमें श्री चेम्बरलेनने एक खरीता लॉर्ड मिलनरके नाम भेजा है। उसे पढ़नेसे वाइसरायके बारेमें यह आशंका होती है कि वे शायद सोचें कि अगर उपनिवेशमें बसे स्वतंत्र भारतीयोंके साथ अच्छे व्यवहारका आश्वासन मिल सकता हो तो गिरमिटिया मजदूरोंके विषयमें नेटाल सरकारकी इच्छाके सामने झुका जा सकता है। इसलिए इस प्रश्नको हम बहुत दृढ़तापूर्वक साफ कर देना चाहते हैं कि इस उपनिवेशमें एक भी ऐसा स्वतंत्र भारतीय नहीं है जो अपने गिरमिटिया भाइयोंके हितोंकी हत्या करके अपने लिए अच्छा व्यवहार प्राप्त करनेके लिए रजामन्द हो । यह बात जब हम कहते हैं तो, हमारा खयाल है, इससे हम सभी भारतीयोंकी भावनाको ध्वनित करते हैं। स्वतंत्र भारतीय तो आखिर ऐसी स्थितिमें हैं कि वे अपने हितोंकी रक्षा कर सकते हैं । आज नहीं तो कल, उपनिवेशमें स्थितियाँ बदलेंगी ही, अथवा साम्राज्य सरकार भी नीतिके साम्राज्यव्यापी प्रश्नोंके सम्बन्धमें अपनी बात उपनिवेश द्वारा मनवायेगी ही । तबतक स्वतंत्र भारतीय इसकी राह भी देख सकते हैं। परन्तु गिरमिटिया मजदूर तो एक निरा लाचार और बेबस प्राणी है । भुखमरीसे बचनेके लिए वह अपना देश छोड़कर यहाँ आता है । देशके अपने तमाम स्नेह- बन्धनोंको तोड़कर वह नेटालका निवासी इस तरह बन जाता है, जैसे एक स्वतंत्र भारतीय कभी नहीं बन सकता। भूखों मरनेवाले आदमीका अपना कोई घर या देश होता ही नहीं । उसका घर तो वही है जहाँ वह अपने-आपको जीवित रख सके। इसलिए जब वह नेटालमें आता है और देखता है कि यहाँ कमसे कम अपना पेट भरनेमें उसे कोई कठिनाई नहीं है, तो वह इसे तुरन्त अपना घर बना लेता है। नेटालमें अपने वर्गके जिन लोगोंसे वह स्नेह-सम्बन्ध कायम कर लेता है, वे ही उसके पहले सच्चे मित्र और परिचित बन जाते हैं। इन स्नेह-सम्बन्धों को तोड़कर उसे कहीं अन्यत्र जानेके लिए कहना शुद्ध निर्दयता है। इसलिए हमें यह कहने में Gandhi Heritage Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५१९
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