जोहानिसबर्ग की भारतीय बस्ती ४९३ मनोरंजन तो अब शुरू ही हो रहा है। अब उस सारे भागपर नगर परिषदने अधिकार कर लिया है और वहाँ के निवासियोंकी किस्मत अब उसकी दयापर निर्भर है। जोहानिसबर्गके समा- चार-पत्रोंमें हम पढ़ते ही हैं कि इनके मुआवजेके दावोंकी कैसी दुर्दशा की जा रही है । हमें यह भी ज्ञात हुआ है कि उस क्षेत्रसे नगरके स्वास्थ्यको खतरा हो या न हो, नगर-परिषद किराये- दारोंके कब्जेको अभी हटाना नहीं चाहती और उसने दया करके तय किया है कि वे २६ सितम्बर से पहले अपनी जमीनोंके मालिकोंको जो किराया देते थे, वही अब नगरपालिकाको देते रहेंगे और अपने मकानों दुकानोंपर कब्जा रख सकेंगे। इस तरह, अगर अबतक कहीं किराया- खोर थे तो अब नगर परिषदने उस पदको प्राप्त कर लिया है; और अगर पहले वहाँकी आबादी घनी थी तो वह अब भी बनी रहेगी। खुद डॉ० पोर्टरने प्रमाणित किया है कि इस अस्वच्छ बस्तीके कुछ हिस्सों में तो अवर्णनीय रूपसे घनी आबादी है। हाँ, पहले और अबमें यह फर्क जरूर है कि पहले गरीब मकान मालिकों को नगर परिषदके घनी आबादी-सम्बन्धी नियमोंका पालन करना पड़ता था, किन्तु अब तो खुद परिषद ही मालिक है, इसलिए वह इन नियमोंसे व्यव- हारतः बरी है। और अब चूंकि परिषदका कब्जा है, अतः समाजके आरोग्यका खतरा भी बिलकुल जाता रहा। मतलब, शक्ति और अशक्तिके बीच, सत्ता और अधीनताके बीच यह अन्तर है । इस बीच दो वर्ष बीत गये, परन्तु जोहानिसबर्ग में कोई बीमारी नहीं आई और न उस कथित अस्वच्छ बस्तीके गरीब बाशिन्दे किसी प्रकार खतरेका कारण सिद्ध हुये हैं । डॉ० पोर्टरने अपने उन्मादमें जो दलील दी थी, यह घटना उसकी निःसारताका अकाट्य प्रमाण है । परन्तु इस सबकी वेदना सबसे अधिक जोहानिसबर्गके ब्रिटिश भारतीय ही अनुभव करेंगे, जो सबसे अधिक कमजोर हैं। उनकी ही हालत सबसे बुरी है । दूसरे लोगोंको तो मुआवजेके रूपमें जो कुछ मिलेगा उससे वे ट्रान्सवालमें अन्यत्र कहीं जमीन खरीद लेंगे और जहाँ उनका जी चाहेगा रह सकेंगे। परन्तु भारतीयोंको तो इन दोमें से एक भी हक हासिल नहीं है । सारे ट्रान्सवालमें भारतीयोंको अपने नामपर निन्यानवे वर्षके पट्टेपर जमीन रखनेकी सुविधा अगर कहीं थी तो वह केवल जोहानिसबर्गमें ही, और सो भी उक्त बस्तीके छियानवे बाड़ोंमें। किन्तु वे नहीं जानते कि अब जोहानिसबर्ग में कहीं वे वैसे ही पट्टेपर जमीन खरीद सकेंगे या नहीं । यद्यपि अस्वच्छ बस्ती अधिग्रहण अध्यादेश (इनसैनिटरी एरिया एक्स्प्रोप्रिएशन आर्डिनेन्स ) में यह गुंजाइश रखी गई है कि स्थान- वंचित लोगोंके रहनेका प्रबन्ध वहीं कहीं बेदखल क्षेत्रके बहुत नजदीक कर दिया जाये, परन्तु उन्हें कहाँ बसाया जायेगा इसका कोई पता नहीं है । स्मरण रहे, भारतीय आबादीका अधिकांश भाग जोहानिसबर्गमें ही रहता है । वहाँ बसनेवाले देशभाइयोंसे हमें पूरी सहानुभूति है । और अगर वहाँकी सरकार उनकी मदद नहीं करेगी तो सबकी सुध लेनेवाले परमात्माकी दयाका तो हमें पूरा-पूरा भरोसा है । वह उनका हाथ नहीं छोड़ेगा । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, १-१०-१९०३ Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५३५
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