TEPE राजनीतिक नैतिकता ४९५ पूछताछ किये उसे ३१ दिसम्बर १९०२ तकके लिए व्यापारका परवाना दे दिया नवम्बरमें मजिस्ट्रेटको पता लगा कि उसके पट्टेकी मियाद तो वस्तुतः खत्म हो चुकी है और, फलतः, परवाना झूठ बहानोंके आधारपर लिया गया है। वस्तुस्थिति (३) यह पहले ही बताया जा चुका है कि पढेकी मियाद तो सचमुच खत्म नहीं हुई थी, क्योंकि वह नया बनवा लिया गया था। इसलिए अगर कोई मामूली आदमी यह झूठे बहानोंका आरोप लगाता तो यह मान-हानि समझी जाती। मजिस्ट्रेटने जब परवाना दिया था तब उसने सम्बन्धित पट्टा देख लिया था । सरकारी कथन (४) एशियाइयोंको व्यापारके परवाने देनेमें इस सिद्धान्तका खयाल रक्खा गया था कि लड़ाईके पहले जिनके पास व्यापार करनेके परवाने थे, और जिनका व्यापार लड़ाईके कारण, अर्थात् लड़ाई छिड़ जानेपर या लड़ाईकी आशंकासे बन्द हो गया था, उन्हीं को नये परवाने दिये जायें। जब लड़ाई छिड़ी तब हुसेन अमद व्यापार नहीं करता था । और उसका व्यापार लड़ाई-सम्बन्धी किसी कारणसे बन्द नहीं हुआ था । अतः यह मामला उस सिद्धान्तके मातहत नहीं आता । वस्तुस्थिति (४) जिन दिनों इस परवानेके प्रश्नपर सरकार विचार कर रही थी यह पद्धति प्रचलित थी कि लड़ाईके पहले जो लोग व्यापार करते थे और जिन्होंने लड़ाई शुरू होनेपर या लड़ाईकी आशंकासे व्यापार बन्द कर दिया था, उन सबको परवाने मिल सकते थे। जो भारतीय सन् १८९८ में अथवा उससे पहलेसे व्यापार करते थे उनको परवाने मिल जाते थे। इसकी पुष्टिमें दर्जनों उदाहरण दिये जा सकते हैं । अर्जदारने फिजूल ही इस तर्कपर जोर दिया और वास्तविकता सरकारके सामने रखी। इसके अलावा लड़ाईकी आशंकासे अपनी दूकान किसीने बन्द की थी, तो वह हुसेन अमद थे । सरकारी कथन (५) सरकारको यह पता लग गया था कि सम्बन्धित व्यापारीने बहुत-सा माल इकट्ठा कर लिया है और सो भी झूठे बहानोंके आधारपर परवाना हासिल करके । फिर भी ऐसे मामले में जितनी रिआयत सम्भव थी उतनी रिआयत करनेका फैसला किया गया और हुसेन अमदका परवाना नया करनेके लिए गत अप्रैल मासमें ही वाकरस्ट्रूमके रेजिडेंट मजिस्ट्रेटको लिख दिया गया था । वस्तुस्थिति (५) रिपोर्टमें यह नहीं बताया गया कि सरकारको यह पता लगानेमें चार महीने लग गये कि उसके पास बहुत-सा माल था और इस बीचमें क्योंकि उसकी दूकान जबर- दस्ती और गैर-कानूनी रूपसे बन्द कर दी गई थी, इसलिए वह लगभग भूखों मरने लगा था । दूकानको जबरदस्ती बन्द करनेके लिए सरकारके पास कोई कानूनी अधिकार तो Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५३७
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