३५३. कृतज्ञताके लिए कारण ऐसे अवसर बहुत कम ही उपस्थित होते हैं जब हम ट्रान्सवालकी सरकारको बधाई दे सकेँ । किन्तु इस हफ्ते ऐसा करनेके लिए हमें एक बहुत ही अच्छा कारण मिल गया है। सरकारी गज़टमें छपा है कि भारतीयोंको परवाने देनेका काम पुनः मुख्य परवाना-सचिवको सौंप दिया गया है । यह बहुत पहले ही कर देना उचित था । जबसे एशियाइयोंके लिए एक अलग मुहकमा खुला है, तभीसे भारतीय उसका विरोध करते रहे हैं। हम हृदयसे विश्वास करते हैं कि परवाने देनेके काम में यह सुधार एशियाई मुहकमा टूटनेका पूर्व-चिह्न ही है । यह मुहकमा नितान्त अनावश्यक और धनके अपव्ययका सूचक है । हमने पढ़ा है कि सरकार बहुत बड़े पैमानेपर नौकरियों में छँटनी कर रही है। विधानपरिषदने एशियाई मुहकमेके लिए एक खासी बड़ी रकम मंजूर की है। उस समय सर पर्सी फिट्जपैट्रिकने इसके विरोधमें हलकी आवाज उठाई थी । तो, इस मुहकमेको अब बन्द क्यों नहीं कर दिया जाता ? इससे उपनिवेशकी कुछ हजार पौण्डकी बचत तो होगी ही, साथ ही वाजिब शिकायतका एक कारण दूर हो जायेगा । नेटाल और केप दोनों उपनिवेशोंमें भारतीयोंकी आबादी यहाँकी अपेक्षा बहुत अधिक है । परन्तु दोनोंमें से एक भी जगह स्वतन्त्र भारतीयों और अन्योंके बीच व्यवहारमें कोई फर्क नहीं किया जाता । इस बीच इस छोटीसी दयाके लिए हम सरकारके प्रति अपना आभार प्रदर्शित किये देते हैं और विश्वास करते हैं, कैप्टेन हैमिल्टन फॉउले दूसरे परवानोंके समान ही भारतीय परवानोंपर भी न्यायपूर्वक विचार करेंगे। हम ट्रान्सवालको भारतीयोंसे भरना नहीं चाहते; परन्तु हम यह तो जरूर चाहते हैं कि उनके मामलोंकी सुनवाई तुरन्त हो जाया करे, और शरणार्थियोंको परवाने पाने में परेशानी और देरी न हो, और बेकारका खर्च न उठाना पड़े। [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, १-१०-१९०३ ३५४. भारतीयोंके लिए सुअवसर एक सामाजिक बुराईका डटकर मुकाबला करनेपर पिछले हफ्ते हमने श्री स्टुअर्टको बधाई दी थी; परन्तु इस बधाईमें कुछ दुःख भी है। ऐसा प्रतीत होता है कि वे इसमें अति करनेका लोभ संवरण नहीं कर सके हैं। हम देखते हैं कि उनमें सारे भारतीय समाजको घसीटने की हलकी वृत्ति मौजूद है । हमारा खयाल है कि श्री खानके बारेमें उनके उद्गारोंका कोई औचित्य नहीं है। लॉर्ड ब्रूऐम जैसे प्रामाण्य पुरुष कहा करते थे कि अपने मुअक्किलका गुनाह जानते हुए भी यदि कोई वकील उसकी तरफसे वकालत करनेसे इनकार करे तो वह अपने पेशेके अयोग्य है । सिद्धान्त यह है कि जबतक एक विधिवत् बने न्यायालय में किसीका गुनाह साबित नहीं हो जाता तबतक कानूनकी दृष्टिमें वह बेगुनाह है। लॉर्ड ब्रूऐमका व्यवहार-सूत्र इस सिद्धान्त के आधारपर काफी सवल है। केप-विधानसभाके प्रसिद्ध सदस्यका मामला अभी ताजा है । १. देखिए “ मजिस्ट्रेट श्री स्टुअर्ट, ” २४-९-१९०३ । Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५४१
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