पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२०. मामलेका सार : वकीलकी सलाहके लिए

मामलेके निम्नलिखित सारसे, जो गांधीजीने तैयार किया था, संकेत मिलता है कि विक्रेता-परवाना अधिनियमके अमलसे सम्बन्धित कानूनी प्रश्नोंके बारे में उनका रूख क्या था ।

डयन
 
दिसम्बर २२, १८९८
 

थोक और फुटकर विकेताओंके परवाने सम्बन्धी कानून १८, १८९७ में संशोधनका प्रश्न : वकीलकी सलाहके लिए मामलेका सार

एक नगर परिषद (टाउन कौंसिल) विक्रेता-परवाना अधिनियमके अन्तर्गत परवाना देनेवाले अधिकारीकी नियुक्ति करती है। वह उसे गुप्त अथवा सार्वजनिक रूपसे निर्देश देती है :

(१) एशियाइयोंको परवाने न दिये जायें।
(२) अमुक व्यक्तियोंको परवाने न दिये जायें।
(३) अधिकतर एशियाई व्यापारियोंको परवाने न दिये जायें।

ऐसी हालतमें, क्या परवानेका कोई उम्मीदवार सर्वोच्च न्यायालयसे फरियाद कर सकता है कि वह नगर परिषदको दूसरा अधिकारी नियुक्त करने और ऐसे अधिकारी विवेकाधिकारमें किसी तरहका दखल न देनेका आदेश दे?

एक नगर-परिषद अपने स्थायी कर्मचारियोंमें से किसी एकको-- उदाहरणके लिए, नगर- क्लार्क, नगर-कोषाध्यक्ष या मुख्य रोकड़ियाको- परवाना-अधिकारी नियुक्त करती है।

ऐसी हालतमें, क्या परवानेका कोई उम्मीदवार सर्वोच्च न्यायालयसे फरियाद कर सकता है कि वह नगर-परिषदको किसी बिलकुल स्वतंत्र व्यक्तिकी नियुक्ति करनेका आदेश दे? इस आदेशका आधार यह हो कि स्थायी कर्मचारीपर नगर परिषदका इतना अधिक प्रभाव रहेगा कि उससे नगर-परिषदके विचारोंसे प्रभावित हुए बिना निष्पक्ष निर्णय देनेकी अपेक्षा नहीं की जा सकेगी। साथ ही, उम्मीदवार छोटी और अपीलकी. -दोनों भिन्न अदालतोंके सामने फरियाद करनेके अधिकारसे अमली तौरपर वंचित रहेगा।

कानूनके अन्तर्गत एक परवाना अधिकारी किसी व्यक्तिको इस आधारपर परवाना देनेसे इनकार करता है कि वह भारतीय है, तो क्या सर्वोच्च न्यायालयसे उस अधिकारीको यह आदेश देनेकी फरियाद की जा सकती है कि किसी आदमीका भारतीय होना परवाना देनेसे इनकार करनेका कोई कारण नहीं हो सकता; और उसे अपने निर्णयपर इस निर्देशके अनुसार फिरसे विचार करना चाहिए?

अगर एक परवाना-अधिकारी तमाम भारतीयों या उनकी अधिकांश संख्याको परवाने देनेसे मनमानी तौरपर इनकार करता है, तो क्या यह कहा जा सकता है कि उसने किसी एक या दोनों मामलोंमें विवेकाधिकारका प्रयोग किया है?

एक आदमीने व्यापार करनेके परवानेकी अर्जी दी। उसकी अर्जी नामंजूर हो गई। फिर भी वह बिना परवानेके ही व्यापार करता रहता है। उसपर कानूनकी धारा ९ की अवहेलना करनेका मुकदमा चलाया जाता है और उसे सजा दे दी जाती है। वह सजा भोग लेता है और व्यापार जारी रखता है। तो, क्या सजाके बाद, परन्तु कानूनी वर्षके अन्दर, यह ब्यापार नया अपराध मनाया जायेगा।