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संपूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या कोई आदमी जितने दिनों तक बिना परवाने के व्यापार करता है, उसके अपराध भी, कानूनके अनुसार, उतने ही होते हैं ?

जुर्माना वसूल करनेका तरीका क्या होगा?

अगर सजा पाये हुए व्यक्तिका माल किसीके पास गिरवी है और अगर गिरवीदारका उसपर कब्जा है, तो क्या उस मालसे जुर्माना वसूल करनेका हक पहला माना जायेगा? याद रहे, इस अधिनियमके अन्तर्गत किसी बस्तीके व्यापारपर वसूल किया गया सारा जुर्माना उस बस्तीके कोषमें ही जमा किया जायेगा।

क्या सपरिषद गवर्नरको कानूनको अन्तिम धाराके अन्तर्गत ऐसे नियम बनानेका अधिकार होगा, जिनसे परवाना-अधिकारीके विवेकाधिकारपर अंकुश रहे और परवाना-अधिकारीके लिए अमुक परिस्थितियोंमें परवाने देना अनिवार्य हो ?

मो० क. गांधी
 

हस्तलिखित अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० २९०४) से।

२१. प्रार्थनापत्र : चेम्बरलेनको

विक्रेता परवाना अधिनियम (डीलर्स लाइसेंसेज़ ऐक्ट) का अमल जिस ढंगसे भारतीयोंके अधिकारोंका भंग करके किया जा रहा था उसके बारे में साम्राज्य-सरकारको एक प्रार्थनापत्र भेजा गया था। वह प्रार्थनापत्र नीचे दिया जा रहा है। गांधीजीने उसे नेटालके गवर्नरके नाम एक पत्रके साथ (देखिए पृष्ठ ५६) भेजा था ।

डर्बन
 
दिसम्बर ३१,१८९८
 

सेवामें

परम माननीय जोजेफ चेम्बरलेन

मुख्य उपनिवेश-मन्त्री, सम्राज्ञी-सरकार

लंदन

नेटाल उपनिवेशवासी ब्रिटिश भारतीयोंके नीचे हस्ताक्षर
करनेवाले प्रतिनिधियोंका नम्र प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

आपके प्रार्थी इसके द्वारा विक्रेता-परवाना अधिनियमके बारेमें सम्राज्ञी-सरकारकी सेवामें उपस्थित हो रहे हैं। पिछले वर्ष प्रार्थियोंने इसका विरोध किया था, जो सफल नहीं हुआ।

प्रार्थी सम्राज्ञी-सरकारकी सेवामें इससे पहले ही यह प्रार्थनापत्र भेज देते; परन्तु उनका इरादा एक तो यह था कि वे कुछ समय तक धीरजके साथ अधिनियमका अमल देखें और जान लें कि उन्होंने सम्राज्ञी-सरकारकी सेवामें उपर्युक्त विरोध प्रकट करते हुए जो प्रार्थनापत्र भेजा था उसमें अनुमानित आशंकाएँ साधार थीं या नहीं। दूसरे, वे चाहते थे कि उपनिवेशके अन्दर ही सारी कोशिशें करके देख लें और अधिनियमकी समुचित न्यायिक व्याख्या भी करा ली जाये।

प्रार्थियोंको बहुत ही खेदके साथ लिखना पड़ता है कि उपर्युक्त प्रार्थनापत्रमें व्यक्त की गई आशंकाएँ अनुमानसे भी ज्यादा सही साबित हुई हैं; और यह भी कि, अधिनियमकी