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६९. भाषण : एक विवाहमें [१]

२८ फरवरी, १९२६

आप लोग, भाई और बहनें दोनों, जो बाहरसे परिश्रम उठाकर रामेश्वर प्रसाद और कमला इन दोनों को आशीर्वाद देने को आये हैं इससे मुझे आनन्द होता है और मैं आपको धन्यवाद भी देता हूँ। धन्यवाद देनेका सबब यह है कि इसको आप सामान्य विवाह नहीं समझते। हिन्दू जातिमें जो विवाह होता है, उसमें बहुत आडम्बर होता है। राग-रंग, नाच-तमाशा, खाना-पीना अनेक प्रकारका प्रलोभन होता है। विवाहका धार्मिक अंश, जिसके कारण विवाह करना योग्य समझा गया है, वह धार्मिक कारण छूप जाता है और हम धार्मिक अंशको भूल जाते हैं। विवाहमें पैसेका व्यय इतना अधिक होता है कि गरीबोंको विवाह करना आपत्ति-सी हो जाती है। कई लोग कर्जदार हो जाते हैं, और उस कर्ज में से जन्म-भर भी उनके लिए छूटना मुश्किल हो जाता है। ऐसे विवाहसे वर और कन्या दोनों गृहस्थाश्रममें धर्म-विधिका पालन करें, यह आकाश पुष्पवत् हो जाता है। जिसमें इतना आडम्बर होता है और जो विवाह-विधि इतनी विकारमय होती है और जिसे विकारमय बनानेके लिए माता-पिता इतना परिश्रम उठाते हैं, उससे वर और कन्या संयममय जीवन व्यतीत करें, यह मुश्किल बात है। यद्यपि इस आश्रमका आदर्श यह है कि विवाहित होते हुए भी ब्रह्मचर्यका पालन करना चाहिये और उसी प्रकार कुछ लोग रहते भी हैं, बालक और बालिकाओंको ब्रह्मचर्यकी शिक्षा और पदार्थपाठ दिये भी जाते हैं, ऐसा होते हुए भी आश्रमके नजदीक और उसकी छायामें विवाह किया जाता है, इसका कारण क्या? इसको धर्म-संकट माना जाये। अहिंसाका पालन करनेवाले किसीपर बलात्कार नहीं करते। आश्रमवासियों में से जो ब्रह्मचर्यका पालन नहीं कर सकते उनके लिए विवाह करना कर्तव्य ही है। और इस कर्त्तव्यको करनेमें हम उनको आशीर्वाद क्यों न दें? और विधि भी अच्छी क्यों न चलायें? यह भी कर्त्तव्य है और इसका पालन करते हुए और सोचते हुए मैंने यह देखा है कि हिन्दुस्तान में अथवा सारे संसार में जहाँ विवाह में धार्मिक विधि मानी जाती है वहाँ उसमें संयमका अंश होता है। विवाह स्वेच्छाचारके लिए नहीं है। स्मृतियोंमें भी लिखा है कि जो दम्पती नियमसे रहते हैं वे भी ब्रह्मचर्यका पालन करते हैं। मैंने भी इसको बहुत समयतक नहीं समझा था। पर बहुत विचार करनेके बाद मैं समझ सका। जो अपने विकारोंका नाश नहीं कर सकते वे मर्यादामें रहकर विकारोंपर अंकुश रखते हुए अनिवार्यतः इतना ही व्यवहार कर सकते हैं। वे भी संयमी कहलाते हैं। जमनालालजीका और मेरा जो सम्बन्ध है वह तो आप खूब जानते ही हैं। हम दोनोंमें यह निश्चय हुआ कि जितनी सादगीसे और कम खर्चसे विवाह कर सकें, करना चाहिए। इस तरहसे विवाहकी क्रिया करनी चाहिए कि

 
  1. जमनालाल बजाजको पुत्री कमलाके विवाहमें; विवाह-विधि साबरमती आश्रम में सम्पन्न हुई थी।