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भाषण: एक विवाहमें

जिससे दोनोंपर ऐसा प्रभाव पड़े कि वे विवाहका सच्चा अर्थ समझ सकें। विवाहको आडम्बर रहित बनाना, भोजनादिको और गान-तानको स्थान नहीं देना, ऐसा अच्छी तरहसे कहाँ हो सकता है? अगर बम्बईमें किया जाये तो मारवाड़ी समाजको और जमनालालजीके मित्रोंको इससे पाठ मिलेगा। आजकल सुधारोंके नामसे जो अधर्म चल रहा है, वह वायु नष्ट हो जायेगा। जो धर्म समझना चाहें, उनके लिए दृष्टान्त हो जायेगा। परन्तु मुझे यह भय था कि जितनी सादगीके साथ यहाँ विवाह हो सकता है उतनी सादगीके साथ वहाँ नहीं हो सकेगा। इसकी दलीलोंमें मैं उतरना नहीं चाहता। इसी कारणसे मैंने वर्धाको भी छोड़ दिया और बम्बईको भी छोड़ दिया। परन्तु इस कार्यको कैसे किया जाये? जमनालालजी और उनके माता-पिताकी सम्मतिसे ही काम नहीं चल सकता था। रामेश्वर प्रसादके वडील[१] वर्गकी भी सम्मतिकी जरूरत थी। प्रभुका अनुग्रह था कि केशवदेवजीने भी इसे स्वीकार कर लिया। मारवाड़ी समाजमें धन बहुत है और खर्च भी अधिक होता है, इतना अधिक कि गरीबोंको विवाह करना अशक्य-सा हो जाता है; और उनपर बोझ पड़ता है। विवाहों में फुलवाड़ी, भोजन, बत्तियाँ और नायिकाओंका नाच होता है। मैं नहीं जानता कि मारवाड़ी लोगों में नाच होता है या नहीं, परन्तु गुजरातके धनिक लोगों में तो कहीं-कहीं होता है। इसका असर सारे मारवाड़ी समाजपर, और मारवाड़ी समाज हिन्दू जातिका एक अंश है, इसलिए उसपर भी, इतना ही नहीं, बल्कि मुसलमान इत्यादि जातियोंपर भी पड़ता है। हाँ, मैं यह मानता हूँ कि उन अन्य जातियोंपर थोड़ा पड़ता है। इससे आप सोच सकते हैं कि धनिक लोगोंपर कितना बोझ है। परन्तु जो धनवान लोग धन कमानेमें मस्त हैं, और अहंकारसे ईश्वरको भूल गये हैं, उनकी बात दूसरी है। मारवाड़ी लोगों में धन है। दुराचार होते हुए भी धर्मके लिए प्रेम है। यह बात में खूब जानता हूँ। धर्मके लिए वे प्रतिवर्ष लाखों रुपये देते हैं। इसका मुझे प्रत्यक्ष अनुभव है। इसलिए हम दोनोंने सोचा कि बिलकुल सादगी से विवाह किया जाये। इसमें स्वार्थ और परमार्थं दोनों हैं—जमनालालजी और केशवदेवजीका, रामेश्वर प्रसाद और कमलाका भला सोचना, यह तो स्वार्थ, और दूसरोंको मार्ग बताना यह परमार्थ है। आप देखेंगे कि इस विवाह में आडम्बर नहीं होगा। नाच-गाना नहीं होगा, विवाहके समय केवल धार्मिक विधियाँ ही की जायेंगी। आप लोगोंको निमन्त्रण इस भावसे दिया गया है कि आप इसके साक्षी हों और इसमें आप सम्मत हों और ऐसी प्रतिज्ञा करें कि आप इसका अनुकरण करेंगे। सम्भव है कि मेरी इसमें भूल हो और आप ऐसा करना पसन्द न करें। हिन्दुस्तानमें चन्द धनिक लोग होनेसे वह धनिकों का देश नहीं हो जाता। यह कंगालोंका मुल्क है। यहाँपर जितने लोग भूखसे मरते हैं और समयपर अन्न न मिलने से व्याधि-ग्रस्त हो जाते हैं और भूख खींचनेसे जड़वत् बन जाते हैं, उतने दुनियाके और किसी देशमें नहीं। यह मेरा कहना नहीं है, इतिहासकारोंका कथन है—हिन्दू-मुसलमान इतिहासकारोंका नहीं—राज्यकर्त्ता के कौमके लोगोंका यह कथन है। ऐसे कंगाल मुल्कके करोड़पतियोंको भी ऐसा काम करनेका अधिकार नहीं है जिससे

 
  1. परिवारके बड़े बुजुर्ग।
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