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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अवस्था में अपना सारा ध्यान पहलेसे ही चल रहे केन्द्रोंपर लगाना चाहिए और उनका प्रभावकारी संगठन करके उन्हें आत्म-निर्भर और स्थायी बना देना चाहिए। रुईकी माँग अवश्य पूरी की जानी चाहिए और यह काम तो धनीमानी लोग ही नकद धन या सामानके रूपमें अनुदान देकर कर सकते हैं। अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारकके प्रति उतना उत्साह नहीं दिखाया जा रहा है, जितना चाहिए। इसका मुख्य कारण यह है कि चन्दा करना स्थगित कर दिया गया है। फिर भी, मुझे आशा है कि जो जानकारी श्रीयुत राजगोपालाचारी और राजेन्द्र बाबूने हम सबको दी है, वह चरखेकी शक्ति में विश्वास रखनेवाले लोगोंको अपनी-अपनी थैलीका मुँह खोल देनेको प्रेरित करनेके लिए काफी साबित होगी। चरखेके लिए दान देना, मेरे विचारसे दानका एक आदर्श तरीका है, क्योंकि एक ओर तो यह गरीबोंको भिखारी और निठल्ले बनाये बिना तथा उन्हें आत्म-सम्मानसे वंचित किये बिना उन्हें सहायता पहुँचाता है और दूसरी ओर इसका उद्देश्य कपड़ेके मामलेमें भारतको आत्म-निर्भर बनाना और जो लगभग साठ करोड़ रुपये प्रतिवर्ष भारत से विदेशोंको चले जाते हैं, उन्हें बचाना है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-३-१९२६

७९. भारतीय नारियोंकी सेवा संस्था

स्वर्गीय श्रीमती रमाबाई रानडेकी स्मृतिमें अपनी नम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मैंने पूनाकी सेवासदन सोसाइटीके महान् कार्यका उल्लेख किया था। इस संस्थाकी आत्मा श्रीयुत देवधर है। अब उन्होंने इस सोसाइटीके कार्यके सम्बन्धमें साहित्य भेजा है और मुझसे उसकी समीक्षा करनेको कहा है। समीक्षा करनेके लिए उन्होंने इस आशासे कहा है कि उससे प्रेरित होकर 'यंग इंडिया' के पाठक इस संस्थाको शायद कुछ सहायता दे सकें। संस्थाकी सालाना आय लगभग २ लाख और कुल खर्च अनुमानतः २½ लाख रुपये है। जिस संस्थाको में अच्छी तरह नहीं जानता, उसके कार्यकी समीक्षा में शायद ही करता हूँ। इस संस्थाको ठीक तरहसे जाननेका दावा मैं नहीं कर सकता, लेकिन श्रीयुत गो० कृ० देवधरको मैं अच्छी तरह जानता हूँ। हम दोनोंके बीच राजनीतिक मतभेद जरूर हैं, लेकिन उनके कारण ऐसा कभी नहीं हुआ है कि देशके प्रति उनकी निष्ठाकी ओरसे, लगभग एक पीढ़ीसे वे जिस असीम कार्यशक्तिका परिचय देते आ रहे हैं, मेरी आँखें बन्द हो गई हों। सेवासदन सोसाइटीके कार्यका वर्णन खुद उन्हींके शब्दोंमें पढ़िए :

पूनाके सेवासदनने धीरे-धीरे प्रगति करते हुए अब एक ऐसी महती संस्थाका रूप ले लिया है, जो भारतीय नारियोंकी सेवाके लिए समर्पित है, इसकी शाखाएँ दूर-दूर तक फैली हुई हैं और बहुत-सी दूसरी संस्थाएँ भी इससे सम्बद्ध हैं। इन तमाम शाखाओं और संस्थाओंके जरिये यह साहित्यिक, औद्यो-