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रुईकी माँग

गोमांस भी खाते हैं और शराब भी पीते हैं। उन्होंने किसी नये धर्मकी दीक्षा नहीं ली है। एक धर्मको छोड़कर किसी दूसरे धर्म में दीक्षित होनेवाले व्यक्तिको अंग्रेजीमें "कन्वर्ट" कहा जाता है, जिसका वही अर्थ है या होना चाहिए जो संस्कृतके "द्विजन्मा" शब्दका है। अतएव, अगर कोई व्यक्ति किसी प्रकारकी सुविधाके लिए नहीं बल्कि हृदयकी प्रेरणापर अपना धर्म-परिवर्तन करता है तो उससे आचारके उच्चतर मानदण्डका निर्वाह करनेकी अपेक्षा की जाती है। लेकिन, अभी मुझे ऐसे गम्भीर विवेचन में नहीं पड़ना चाहिए। अपने-आपको यह कह सकनेकी स्थितिमें पाकर मुझे बहुत हर्षका अनुभव हो रहा है कि यदि ईसाइयों और ईसाई मिशनरियोंके मेरे कुछ अनुभव दुःखद हैं तो कुछ बहुत सुखद भी हैं और इन सुखद अनुभवोंको मैंने बड़े चावसे अपने मनमें संजो रखा है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि उनमें सहिष्णुताकी भावना बढ़ती जा रही है। व्यक्तिगत रूपसे उनमें कुछ लोगोंको हिन्दू-धर्म और दूसरे धर्मोकी अच्छी समझ और उनके गुणोंकी पहचान भी है और कुछ तो यह भी स्वीकार करते हैं कि दुनियाके अन्य महान् धर्म झूठे नहीं हैं। उदारताकी इस बढ़ती हुई भावनासे सबको खुशी होगी, लेकिन मैं मानता हूँ कि उस दिशा में अभी बहुत कुछ करना शेष है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ४-३-१९२६

७८. रुईकी माँग

बाबू राजेन्द्रप्रसादने मुझे निम्नलिखित पत्र[१] भेजा है:

इस पत्र से मैंने उस अंशको निकाल दिया है जिसमें सतीश बाबूने कतैयोंकी अपने-अपने हिस्सेकी रुई प्राप्त करनेकी व्यग्रताका हाल बताया है। राजेन्द्र बाबूने बताया है कि कतैयोंमें अधिकांशतः मुसलमान स्त्रियाँ हैं। अगर उन्होंने उन कतैयोंकी संख्या भी बताई होती, जिनके बीच हर हफ्ते ६०० रुपये बाँटे जा रहे हैं तो बड़ा अच्छा होता। लेकिन, संख्याका पता लगाना कोई कठिन बात नहीं है, अवकाशके समयका उपयोग करके हर हफ्ते औसतन आठ आनेसे अधिक नहीं कमाया जा सकता। इस प्रकार तीन ही केन्द्रोंमें कमसे कम १२०० जरूरतमन्द औरतें इससे लाभ उठा रही हैं। मेरे जानते तो अगर पर्याप्त कार्यकर्त्ता और पैसे हों तो ऐसे सैकड़ों केन्द्र खोले जा सकते हैं। दुर्भाग्यवश इन दोनोंका अभाव है—और पैसेकी अपेक्षा कार्यकर्त्ताओंका अभाव ज्यादा है। समझदारीसे चन्दा किया जाये तो पैसा तो इकट्ठा किया जा सकता है, लेकिन ठीक ढंगके कार्यकर्त्ता उतनी आसानीसे नहीं जुटाये जा सकते। लेकिन, प्रतिदिन जो तथ्य और आँकड़े इकट्ठे किये जा रहे हैं, उनसे प्रकट होता है कि वह दिन दूर नहीं जब हाथ कताईको सभी लोग अपना लेंगे। संक्रान्तिकी

 
  1. पत्रका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है।