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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिया जाता है, वे कताईकी अपेक्षा अधिक लाभप्रद हैं, लेकिन निश्चय ही हर चीजका महत्त्व आर्थिक लाभकी ही दृष्टिसे आंकनेकी जरूरत नहीं है। १,२३४ लड़कियों और महिलाओंको इस बातके लिए बड़ी आसानीसे प्रेरित किया जा सकता है कि वे अपनी अपेक्षाकृत कम खुशकिस्मत बहनोंके निमित्त प्रतिदिन आधा घंटा दिया करें और जब वे यह जान जायेंगी कि वे खादीकी जो साड़ियाँ पहनती हैं, उनसे उनकी कुछ-एक बदकिस्मत बहनोंको अपने भूखे पेट भरनेमें मदद मिली है तब वे उन साड़ियोंको, जो कुछ ज्यादा भारी होती हैं, मजेमें पहन सकेंगी और उनका वजन बर्दाश्त कर सकेंगी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-३-१९२६

८०. अपने नग्न रूपमें

कलकत्तासे प्रकाशित होनेवाले 'फॉरवर्ड' ने १९१९-२० की भारतीय जेल समितिकी रिपोर्टके कुछ अंश छापकर जन-हितका कार्य किया है। जो अंश छापा गया है, उसमें राजनीतिक कैदियोंके साथ किये जानेवाले दुर्व्यवहारके सम्बन्धमें लेफ्टिनेंट कर्नल मलवेनीकी साक्षी दी गई है। इससे वर्तमान शासन-प्रणालीकी बुराई बिलकुल नग्न रूपमें सामने आ जाती है। इससे प्रकट होता है कि अधिकारियोंको किस प्रकार गलत काम करनेकी शिक्षा दी जाती है, और इस तरह किस प्रकार उन्हें भ्रष्ट बनाकर आत्म-सम्मानकी भावनासे वंचित कर दिया जाता है। उन दिनों लेफ्टिनेंट कर्नल मलवेनी अलीपुर केन्द्रीय जेलके अधीक्षक थे। उनके वक्तव्यका कुछ अंश में नीचे दे रहा हूँ :[१]

...विप्लववादी आन्दोलनके प्रारम्भिक दिनोंसे ही में कलकत्तेकी किसी-न-किसी जेलका प्रधान अधिकारी रहा हूँ।...और में कमसे-कम कहूँ तो भी मुझे कहना पड़ेगा कि मुझे [कैदियोंके साथ] जैसा निर्मम व्यवहार करनेका आदेश दिया गया और उसके पालनकी अपेक्षा की गई, उससे मेरी भावनाको बहुत आघात पहुँचा। मैंने एक रिपोर्ट पेश की...जिसमें मैंने अपना मत प्रकट करते हुए कहा कि उन्हें (कैदियोंको) जितने दिनोंतक नजरबन्द रखा जाता है, उससे उनके स्वास्थ्यको हानि पहुँच सकती है और तनहाईकी सजा इतनी कड़ी है, जितनी कड़ी सजाका विधान जेल अधिनियम या जेल-सम्बन्धी विनियमों में कहीं नहीं किया गया है। इस अधिनियम और इन विनियमोंके अधीन सात दिनसे अधिक तनहाईकी सजा नहीं दी जा सकती। मैंने यह रिपोर्ट जान-बूझकर ऐसी स्थिति उत्पन्न करने के लिए पेश की थी जिससे या तो मुझे नौकरीसे
 
  1. यहाँ इसे आंशिक रूपमें ही दिया जा रहा है।