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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सभी बातोंपर आप अब भी कायम हैं या नहीं? अखबारोंका कहना है कि आपने कई बातोंमें अपने विचार बदल दिये हैं, किन्तु असहयोगके लिए आप आज भी उतने ही उत्सुक हैं, जितने पहले थे? हमारे यहाँके सबसे मुख्य अखबारमें आपपर एक लेख निकला है। एक अलग कागजपर उसकी मुख्य बातोंका अनुवाद करके भेज रहा हूँ। मेरा खयाल है, उनसे सिद्ध होता है कि लोगोंमें भारतकी वर्तमान स्थितिके सही ज्ञानका बहुत अभाव है। वे नहीं समझते कि चूँकि अंग्रेजोंने भारतके जनसाधारणके चरित्रके हर उदात्त पक्षको कुचल देने की कोशिश की है, इसलिए अबतक वह जो-कुछ खो चुका है उसे एक दिन, एक महीने अथवा एक वर्षमें ही वह पुनः प्राप्त नहीं कर सकता। आज वह जिस धरातलपर खड़ा है, वहींसे उसे पुननिर्माणका कार्य शुरू करना है। यह काम बेशक धीरे-धीरे होगा, लेकिन जिन लोगोंको इस विशामें उन्मुख करना है उनको कैसी शानदार परम्पराएँ हैं!

मैं नहीं तय कर पा रहा हूँ कि उस लेखके जिन अंशोंका अनुवाद भेज रहा हूँ, आपको उनका उत्तर देनेका कष्ट देनेकी धृष्टता मुझे करनी चाहिए या नहीं। लेकिन, मैं जनताको आपके असली विचारोंसे अवगत कराना चाहता हूँ। ... मैं समझता हूँ, आपका चरखा ही वह आधारशिला है, जिसपर भारतको मुक्ति, उसकी आर्थिक समृद्धि और इन दोनोंके परिणामस्वरूप आध्यात्मिक "पुनर्जागरण" का भवन खड़ा करना है।

आपसे यह सब कहकर अगर मैंने मर्यादाका उल्लंघन किया हो तो मुझे क्षमा करेंगे। 'बाइबिल' में एक वाक्य है, "प्रेम भयको भगा देता है।" और मैं भारत तथा भारतीय जनतासे लगभग चालीस वर्षोंसे प्रेम करता आ रहा हूँ। यही कारण है कि मैंने यह पत्र इस तरह लिखा है।

पत्र-लेखकने उक्त लेखके जिस अंशका अनुवाद[१] करके भेजा है, वह इस प्रकार है:

गांधीका कट्टर आध्यात्मिक साम्राज्यवाद और पाश्चात्य सभ्यताके प्रति उनकी घृणा प्रतिक्रियावादी भारतका प्रतिनिधित्व करती है। उनका आदर्श सबसे अलग-थलग रहनेवाला प्राचीन ग्राम्य समाज है, शेष दुनियासे भारतका यह पूर्ण अलगाव आर्थिक आत्मनिर्भरताका परिणाम था। इसे प्राप्त करनेके लिए पाश्चात्य सभ्यताके बन्धनोंसे छुटकारा पाने के उपाय के रूपमें गांधी घर-घरमें कताई करने की सलाह देते हैं। किन्तु दूसरी ओर वे स्पष्टतः रोटीकी राजनीति चला रहे हैं, अंग्रेजोंको सरकारी नौकरियोंसे पूरी तरह उखाड़ फेंकनेका प्रयत्न कर रहे हैं ... । ... इस बातमें कोई अत्युक्ति नहीं है कि भारतकी राजनीतिक जीवनी शक्ति बहुत अधिक सीमातक पाश्चात्य सभ्यताके ही एक

  1. यहाँ उद्धृत अंशके प्रासंगिक हिस्सोंका ही अनुवाद दिया जा रहा है।