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४६. पत्र : मोतीबहन चौकसीको

साबरमती आश्रम
रविवार, २१ फरवरी, १९२६

चि० मोती,

तुम्हारे पत्र मिलते रहते हैं। कभी-कभी होनेवाली अनियमितता से घर-गृहस्थी की असुविधाओंका दर्शन होता है। उसमें से कुछ तो अनिवार्य हैं। कुछका उपाय तुम दृढ़तापूर्वक कर सकती हो, सो करना। मुझे तुम्हारी लिखावटसे अभी सन्तोष नहीं है। हाँ, यह अवश्य देखता हूँ कि तुमने इस दिशा में कुछ प्रयत्न किया है; लेकिन अपने अनुभवसे मैं तुम्हें यह समझाना चाहता हूँ कि जबतक कापी लेकर तुम चित्रके समान अक्षर चित्रित नहीं करतीं तबतक तुम्हारी लिखावट कदापि सुन्दर न होगी। तुम्हें अपनी लिखावट तो सुन्दर बनानी ही होगी। तुम्हारी तबीयत बिगड़नी नहीं चाहिए। आशा है, नाजुकलालकी तबीयत सुधरती जा रही होगी।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती प्रति (एस० एन० १२११७) की फोटो-नकलसे ।

४७. तार : सोराबजीको

[२२ फरवरी, १९२६के पूर्व][१]

सोराबजी

सेवाय होटल

दिल्ली

आपका तार[२] मिला। मेरी राय है कि विरोध करनेकी छूट रखकर और गोलमेज सम्मेलनका आग्रह करते हुए दक्षिण अफ्रिकी भारतीय समाजको सिद्धान्तके सवालपर गवाही देनी चाहिए।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११९३९) की माइक्रोफिल्मसे।

 
  1. सोराबजीने अपने २३ फरवरीके पत्रमें इस तारके २२ फरवरी की रातमें प्राप्त होनेकी बात लिखी है।
  2. तार इस प्रकार था : "पंडित मोतीलाल नेहरू, मौलाना मुहम्मद अली और श्रीमती सरोजिनी नायडूने हमें तार भेजा है कि दक्षिण आफ्रिकी [भारतीय] समाजको प्रवर समितिके सामने एक पक्षके रूपमें उपस्थित नहीं होना चाहिए और न अपनी ओरसे कोई गवाही ही देनी चाहिए। हाँ, समाजके लोगों से