पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

४९. पत्र : नवरोजी खम्भाताको

साबरमती आश्रम
मंगलवार [२३ फरवरी, १९२६]

भाई नवरोजी खम्भाता,

आपका पत्र मिल गया है। चि० जालके नवजोत संस्कारके[१] अवसरपर हम दोनोंकी ओरसे उसे आशीर्वाद कहिए।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (जी० एन० ६५८२) की फोटो-नकलसे।

५०. पत्र : मोतीबहन चौकसीको

साबरमती आश्रम
मंगलवार, २३ फरवरी, १९२६

चि० मोती,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हें आश्रमकी याद आती है तो यह कोई आश्चर्यकी बात नहीं। लेकिन तुम अपनी इस इच्छाको रोक रही हो, यही ठीक है। इसमें तुम्हें सफलता प्राप्त होगी। आश्रमको तो तुम्हें भूलना ही होगा। आश्रमकी भावना तुम्हारे हृदय में अंकित हो तो वहीं आश्रम है। नाजुकलाल तुम्हें यहाँ छोड़ जानेकी बात कहते हैं, इससे तो उनकी सरलता ही प्रकट होती है। लेकिन तुम इस सरलताका लाभ नहीं उठाना चाहती, तुम्हें यही शोभा देता है। तुम्हें वहाँ जो सत्संग मिले उसे प्राप्त करना चाहिए। किन्तु तुम्हारे लिए सबसे बड़ा सत्संग तो नाजुकलालका है और वह दो तरहसे है—पतिके रूपमें और रोगीके रूपमें। तुम इस बारकी तरह अपने मनकी स्थितिको मेरे सामने सदा खोलकर रखा करो। मैं बेला बहनसे पत्र लिखनेके लिए कहूँगा।

बापूके आशीर्वाद

सौ० सुकन्या नाजुकलाल चौकसी

राष्ट्रीय शिक्षा-मण्डल

भरूच

गुजराती पत्र (एस० एन० १२११८) की फोटो-नकलसे ।

 
  1. पारसियोंका एक संस्कार, जो हिन्दुओंके यज्ञोपवीत संस्कारसे मिलता-जुलता है।