पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/८३

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५१. पत्र : गोपबन्धु दासको

साबरमती आश्रम
२४ फरवरी, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। इसके सम्बन्धमें मैंने लालाजीसे पत्र-व्यवहार किया था। उन्होंने भी बताया कि इस समय उनके हाथमें पर्याप्त पैसा है। मैं समझता हूँ कि पिछले अकाल-सहायता कोषकी बची हुई रकमको चरखेके काममें लगाने में कोई हर्ज नहीं है।

आप जिस तरहका विशेषज्ञ सलाहकार चाहते हैं, वैसा कोई सलाहकार भेजनेकी मैं सोच रहा हूँ। हो सकता है कि ठीक आदमी खोजनेमें कुछ समय लग जाये।

मैं आशा करता हूँ कि आपका स्वास्थ्य अच्छा होगा। मुझमें दिन-ब-दिन ताकत आती जा रही है। कानपुर कांग्रेसके बादसे गोविन्दजीने मुझे कोई पत्र नहीं लिखा है। इसलिए अभी इस वक्त तो मुझे यह भी नहीं मालूम कि वे हैं कहाँ?

हृदयसे आपका,

श्री गोपबन्धु दास
पुरी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १४११६) की माइक्रोफिल्मसे।

५२. पत्र : सुहासिनी देवीको

साबरमती आश्रम
२४ फरवरी, १९२६

प्रिय बहन,

आपका पत्र मिला। मुझे बोलकर लिखानेका सहारा लेना पड़ रहा है, क्योंकि मेरे दाहिने हाथको आरामकी जरूरत है और बायें हाथसे लिखने में बहुत समय लग जाता है।

धन्यवाद। मैं धीरे-धीरे खोई शक्ति पुनः प्राप्त कर रहा हूँ। फिलहाल तो मैं किसीको अनुवादका अधिकार नहीं दे सकता। पश्चिमी देशोंसे कई प्रकाशन संस्थाओंने मुझे लिखा है और सचमुच मेरी समझमें नहीं आता कि क्या करूँ। मेरा इसमें निजी स्वार्थ नहीं है और मेरे लिए यह एक नया अनुभव है कि मुझे अपनी लिखी हुई किसी चीजके लिए पैसा पानेके विषयमें सोचना पड़ रहा है। लेकिन जैसे-जैसे पैसे देने के प्रस्ताव आ रहे हैं, अचानक ही मुझमें लोभ पैदा हो गया है और अब मैं यह