डॉ० एक्टनका कथन है कि 'विवाहके पूर्व युवकोंको पूर्ण संयमसे रहना चाहिए और वे रह भी सकते हैं। इंग्लैंडके राजचिकित्सक सर जेम्स पैगटकी धारणा है कि संयमसे जैसे आत्माको क्षति नहीं पहुँचती, उसी प्रकार शरीरको भी उससे कोई हानि नहीं होती। संयमपूर्ण आचरण सर्वश्रेष्ठ आचरण है।'
डा० इ० पैरियर कहते हैं कि 'पूर्ण संयमके नुकसानदेह होनेकी कल्पना एक मिथ्या कल्पना है और इसके निर्मूल किये जानेकी चेष्टा करनी चाहिए, क्योंकि यह बच्चों ही के मनमें नहीं उनके माता-पिताओंके मनमें भी घर कर लेती है। शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक -तोनों दृष्टियोंसे ब्रह्मचर्य नवयुवकोंकी रक्षा करनेवाली वस्तु है।'
श्री एन्ड्रयू क्लार्क कहते हैं कि 'संयमसे कोई क्षति नहीं होती। वह बाढ़को रोकता नहीं है। वरन् स्फूतिको बढ़ाता है और बुद्धिको तीव्र करता है। असंयमसे आत्मानुशासन समाप्त हो जाता है और आलस्यकी कुटेव बढ़ जाती है; इतना ही नहीं हमारा समूचा अस्तित्व कुण्ठित एवं पतित हो जाता है और शरीरके ऐसे रोगोंसे ग्रसित होने का खतरा पैदा हो जाता है, जो पुश्त-दर-पुश्त चलते रहते हैं। यह कहना कि असंयम नवयुवकोंके स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है—त्रुटिपूर्ण हो नहीं क्रूरतापूर्ण भी है। यह बात झूठ होनेके साथ-साथ खतरनाक भी है।'
डॉ० सरब्लडने लिखा है कि 'असंयमके दुष्परिणाम निविवाद और सर्वविदित हैं; परन्तु संयमके दुष्परिणाम कपोल-कल्पित ही हैं। पहली बात को प्रमाणित करनेवाले बड़े और गम्भीर ग्रन्थ पड़े हुए हैं; दूसरी बातको सिद्ध करनेवाले अभीतक तो सामने नहीं आये। प्रमाणोंसे हीन अस्पष्ट दावे ही अबतक किये गये हैं और वे भी खुले आम नहीं, दबे छुपे ढंगसे बातचीतके दौरान। उन्हें कभी सिद्ध नहीं किया जा सकेगा।'
डॉक्टर मौंटेगजा अपनी एक पुस्तकमें[१] लिखते हैं कि 'ब्रह्मचर्यके द्वारा उत्पन्न होनेवाला कोई रोग मैंने नहीं देखा... आम तौरपर सभी लोग और विशेष रूपसे नवयुवकगण ब्रह्मचर्यके तात्कालिक लाभोंका अनुभव कर सकते हैं।'
बर्नमें स्नायु ज्ञानके आचार्य डाक्टर डयूबाय इस बातकी पुष्टि करते हुए कहते हैं कि 'उन आदमियोंकी बनिस्बत जो कि पशुवृत्तिके चंगुलसे बचना जानते हैं, वे लोग स्नायुविक दुर्बलताके शिकार अधिक होते हैं, जो कि विषय-शमनके लिए अपनी लगाम बिलकुल ढीली किये रहते हैं। उनकी इस बातका पूरा-पूरा समर्थन ब्रिस्टी अस्पतालके चिकित्सक, डाक्टर फैरीके इस
- ↑ ला फीजियालॉजी द लामोर।