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४७९. पत्र: एमिल रॉनिगरको

आश्रम
साबरमती
२३ सितम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मीराबहनने आपको जो पत्र लिखा है, वह मैंने नहीं देखा था। स्पष्ट है कि मेरे शब्दोंका उसने जो अर्थ लिया वह मेरे मनमें नहीं था। में नहीं चाहता कि वह मेरे नामपर, मेरी ओरसे लिखे। लेकिन उसने मेरी बातोंका जो अर्थ लगाया था, उसको देखते हुए तो उसका आपको वैसा पत्र लिखना उचित ही था। आपको लिखा उसका वह पत्र मैंने सुना। उसमें मुझे तो ऐसा कुछ नहीं दिखा जिससे आप यह मान सकें कि मैं आपसे नाराज हूँ। सच तो यह है कि आपकी प्रस्तावनापर मुझे अब भी कोई एतराज नहीं है, और फिर अब तो आपने स्पष्टीकरण भी दे दिया है और अपने रवैयेको भी स्वयं समझ लिया है।

मेरे विचारसे, प्रकाशकको कोई चीज प्रकाशित करते समय उसमें व्यक्त विचारोंसे पूर्ण अथवा आंशिक असहमति प्रकट करने या उन्हें नरम करके पेश करनेका पूरा अधिकार है। यूरोपीय पाठक क्या पसन्द करेंगे या वे कौन-सी बातें ग्रहण कर सकेंगे, यह तो मुझसे ज्यादा आप ही जानते हैं। इसलिए मेरी बातोंको नरम करके पेश करनेका आपको पूरा अधिकार है।

'गाइड टु हैल्थ' में तो वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे मुझे भी कुछ दोष दिखाई देते हैं। अनूदित रूपमें मैंने उसे पूरी तरह नहीं पढ़ा है। इसमें शरीर रचनाके सम्बन्धमें जो तथ्य दिये गये हैं वे अन्य ग्रन्थोंसे लिये गये हैं। इस पुस्तकका एक ही महत्त्व है कि इसमें आत्माके स्वास्थ्यको मुख्य और शरीरके स्वास्थ्यको गौण माना गया है। मैंने ये अध्याय विशुद्ध रूपसे 'इंडियन ओपिनियन' के गुजराती पाठकोंके लिए लिखे थे। इसलिए मैं आपको आश्वस्त करता हूँ कि मेरे नाराज होनेका कोई सवाल ही नहीं था।

हाँ, एक बात मुझे पसन्द नहीं आती। गलत अनुवाद; और मूलके कुछ अंशोंका छोड़ दिया जाना। इसे में अक्षम्य मानता हूँ। जबतक प्रकाशक सम्बन्धित कृतिके लेखकसे इजाजत न ले ले या उसे सूचित न कर दे, तबतक उसे पुस्तकका कोई अंश छोड़ना नहीं चाहिए, उसे पूरा-पूरा छापना चाहिए। इसलिए मेरे लेखोंके प्रकाशनके सम्बन्धमें आपने जो-कुछ किया है, उसपर मेरे तनिक भी नाराज या क्रोधित होनेका खयाल आप अपने मनसे बिलकुल निकाल दीजिए।

हृदयसे आपका,

श्री एमिल रॉनिगर,
श्वैज़

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १०८१९) की फोटो-नकलसे।