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४८०. पत्र: कोण्डा वेंकटप्पैयाको

आश्रम
साबरमती
२३ सितम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र[१] मिला। मैं परिषदको जल्दीमें यह सलाह नहीं दूँगा कि वह आन्ध्र एजेंसी समाप्त कर दे। लेकिन मैंने महसूस किया है कि आप और सीताराम शास्त्री दोनोंके दिल बहुत जल्दी पसीज जाते हैं। मेरे विचारसे कोरी नरमदिली और अहिंसाकी आपसमें पटरी नहीं बैठती। सही अर्थोंमें और सचमुच दयालु बननेके लिए मनुष्यको कभी-कभी कठोर बनना पड़ता है। लेकिन मैं बड़े दुःखके साथ देखता रहा हूँ कि आन्ध्रमें 'स्वतन्त्रता' के नामपर लोग अनुशासनहीनता बरतते हैं। वहाँ सिद्धान्तहीन लोगोंकी चलती है और वे बिना किसी भयके मनमानी करते हैं। ऐसा नहीं कि ऐसी बातें और स्थानों में नहीं हुई हैं, लेकिन आन्ध्रमें कदाचित् यह बुराई बहुत ज्यादा उभरकर सामने आई है। खादी आन्दोलन तत्काल सफल हो सकता है, बशर्ते कि हमें ऐसे अनुशासित कार्यकर्त्ता मिल सकें जिन्हें खादीमें अपार विश्वास हो और जिनके पास खादीके अलावा और कोई काम न हो। अगर आप समझते हैं कि आपको और सीताराम शास्त्रीको खादीपर ऐसी ही आस्था है और आप अवसर आनेपर काफी सख्तीसे काम ले सकते हैं तो आप शौकसे एजेंसी जारी रख सकते हैं। लेकिन अब आपको लोगोंकी टालमटोलकी बातोंमें नहीं फँसना चाहिए; न उनसे सुलह-समझौतेकी बातें ही करनी चाहिए और न लोगोंसे याचना ही करनी चाहिए। एजेंसीको ठीक व्यावसायिक ढंगपर चलाया जाना चाहिए। अगर आप यह सोचते हैं कि यहाँ आने और समस्त परिस्थितिकी चर्चा करनेसे कुछ फायदा होगा तो आप शौकसे यहाँ आ सकते हैं और अपने साथ सीताराम शास्त्रीको तथा जिसे आप चाहें अन्य किसी व्यक्तिको भी साथ ला सकते हैं।

उम्मीद है कि आपका स्वास्थ्य अच्छा है और आप घरेलू चिन्ताओंसे मुक्त हो गये हैं।

हृदयसे आपका,

कोण्डा वेंकटप्पैया गारू
गुण्टूर

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ११२३९) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. वेंकटप्पैथाने सीताराम शास्त्रीको गांधीजी द्वारा दिये गये इस सुझावपर १८ सितम्बरको पत्र लिखकर खेद प्रकट किया था कि गुण्टूरकी खादी एजेंसीको बन्द किया जाये। उन्होंने यह आश्वासन दिया था कि निजी प्रयत्नों और देखभाल करनेसे स्थिति में सुधार हो सकता है।

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