पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 31.pdf/५१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८३
पत्र: गोपबन्धु दासको

नहीं है कि हमें अन्य धन्धोंके साथ-साथ हाथ-कताईको भी पुनरुज्जीवित करना होगा। कहना यह चाहिए कि अगर हमें गाँवोंमें घरकी पुनर्प्रतिष्ठा करनी है तो हम सभीको इसी मुख्य धन्धेपर ही ध्यान देना होगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३०-९-१९२६

४९७. पत्र: गोपबन्धु दासको

आश्रम
साबरमती
१ अक्तूबर, १९२६


प्रिय गोपबन्धु बाबू,

श्री एन्ड्रयूज जानेसे पहले आपको पत्र नहीं लिख सके, इसलिए वे मुझसे कह गये हैं कि मैं उनकी ओरसे आपको लिख दूँ। वे उड़ीसाके प्रश्नपर मेरे साथ बातचीत कर चुके थे; वे जैसा मैंने आपको बताया था वैसा ही सोचते हैं।[१] मानता हूँ कि आपको मेरा वह पत्र तो मिला ही होगा और आप उसका भावार्थ समझ गये होंगे।

क्या आप अब पहलेसे अच्छे हैं?

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

पण्डित गोपबन्धु दास


"समाज" कार्यालय


पुटा, बी॰ एन॰ रेलवे

अंग्रेजी पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ७७३९) से।

सौजन्य: राधानाथ रथ

 
  1. देखिए पत्र: गोपबन्धु दासको, १८-९-१९२६।