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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

संयमित करते हैं उतनी ही हमारी स्थिति बेहतर होती है और यही बात प्रकृतिकी बहुत-सी चीजोंपर लागू होती है। इसलिए यह कहना गलत होगा कि अपनी ऐन्द्रिय वृत्तिपर अंकुश रखना प्रकृतिके नियमपर अन्धश्रद्धा रखना है।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत आर॰ गंगाधरन


तोपिक निलयम्


वाइकोम

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९७१७) की फोटो-नकलसे।

५२३. पत्र: भवानीदयालको

आश्विन सुदी १, [७ अक्तूबर, १९२६][१]

भाईश्री ५ भवानी दयाल,

आपका पत्र मीला है। मेरा ख्याल ऐसा है की मैंने मेरा अभिप्राय भी भेज दीया है। परंतु भेजा भी है तो भी दुबारा लिखता हूँ।

पुस्तकमें असत्य निंदाका दोषारोपण मैंने किया था यह मेरी भूल थी। ऐसा पुस्तक आरंभसे आखरतक पड़नेसे मुझको प्रतीत हुआ। आपको मैंने अन्याय कीया इसलीये क्षमाप्रार्थी हुं। मैंने आपकी कीस पुस्तक पड़कर यह ख्याल कायम कीया था अब मुझे याद नहिं आता।

अब आपके पत्रका उत्तर देता हुं। ऐतिहासिक दृष्टिसे पुस्तकमें कई त्रुटीयां हैं। सब हकीकत यथार्थ नहि है। मैंने ऐतिहासिक दृष्टिसे उसे नहिं पड़ा। और इस दृष्टिसे पड़कर संशोधन करनेका मेरे पास समय भी नहि है। बात यह है कि हमारेमें बहोत कम लोगोंको ऐतिहासिक दृष्टिसे लीखनेका महावीरा है। मैंने जो कुछ सत्याग्रह लड़ाई लीखा है वह भी ऐतिहासिक पुस्तक न माना जाय, मैंने मेरा अनुभव और स्मरण ही दीया है। इसलीये आत्मकथामें आपके पुस्तकका उल्लेख करना कठिन और अप्रस्तुत समझता हूँ।

आपका,
मोहनदास गांधी

मूल पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ८६५५) से।

सौजन्य: विष्णु दयाल

  1. पत्रमें उल्लिखित आत्मकथाका प्रकाशन यंग इंडियाके १० दिसम्बर, १९२५ के अंकसे प्रारम्भ हुआ था, इसके बादको अश्विन सुदी १, ७ अक्तूबरको थी।