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पत्र: आर॰ गंगाधरनको

अगर आज कोई मुझे इस तरहका कोई और काम आरम्भ करनेके लिए कहे, तो मैं साफ इनकार कर दूँगा। मैं चाहता हूँ कि आप मेरी कठिनाई समझें।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९७१५) की फोटो-नकलसे।

५२१. पत्र: डा॰ मुरारीलालको

आश्रम
७ अक्तूबर, १९२६

प्रिय डा॰ मुरारीलाल,

आपका पत्र मिला। आपके इस महान् दुःखमें मेरा हृदय आपके साथ है। मुझे मालूम नहीं था कि आपके भाईकी मृत्यु हो गई है। प्रत्येक सार्वजनिक कार्यकर्त्ताको प्रायः ऐसी कीमत चुकानी पड़ती है।

जहाँतक चुनाव सम्बन्धी कटुताकी बात है आप मुझे जितना शक्तिशाली मानते हैं उतना मैं नहीं हूँ। अगर मुझे लगता कि मेरा ऐसा करना उपयोगी सिद्ध होगा तो, विश्वास कीजिए, मैं किसीके अनुरोधकी प्रतीक्षा न करता। जैसे भी होता, मैं पण्डितजी और लालाजीको अपनी बात सुननेपर मजबूर कर देता। लेकिन मैं जानता हूँ कि मैं लाचार हूँ, और इसलिए मैं कष्टको हँसते-खेलते सहन करता हूँ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९७१६) की माइक्रोफिल्मसे।

५२२. पत्र: आर॰ गंगाधरनको

आश्रम
साबरमती
७ अक्तूबर, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मैं चाहूँगा कि आप समस्यापर एक दूसरे पहलूसे विचार करें। प्रकृतिने हमारे मार्गमें स्त्री-पुरुष भेदके द्वारा...[१] आसक्तिका जाल फैला रखा है। अगर हम इस आसक्तिके वशीभूत हो जाते हैं तो हम भौतिकतासे ऊपर नहीं उठ पाते, पर यदि हम इसपर विजय प्राप्त कर लेते हैं तो हम ऊँचे उठ जाते हैं। जिह्वा हमें स्वाद लेने और बोलनेके लिए दी गई है। लेकिन हम इसे जितना

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