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५२६. तार: च॰ राजगोपालाचारीको

साबरमती
९ अक्तूबर, १९२६

राजगोपालाचारी
तिरुच्चङगोड (दक्षिण भारत)

आप कह सकते हैं कि जबतक आपका हृदय स्वीकार नहीं करता तब- तक आप चुनाव प्रचार आन्दोलनका संचालन नहीं कर सकते, न समर्थन कर सकते हैं क्योंकि चुनावोंको लेकर आपसी कलहके कारण दिन-प्रतिदिन कटुता बढ़ती जा रही है।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १२०७२ ए॰) की फोटो-नकलसे ।

५२७. क्या यह जीवदया है[१]?—१

अहमदाबाद "जीवदया प्रचारिणी महासभा" की ओरसे मेरे पास एक पत्र आया है। उसके आवश्यक अंश मैं नीचे उद्धृत करता हूँ:

...सेठजी द्वारा अपनी मिलमें लगभग ६० कुत्तोंको गोलियोंसे उड़वा देनकी इस समय शहर भरमें बड़ी चर्चा हो रही है। बहुतसे दयालु सज्जनोंके हृदयोंको इससे बहुत सन्ताप हुआ है।
हिन्दू धर्मशास्त्रों में किसी भी जीवको मारना निषिद्ध है। उनमें कहा गया है कि जीवोंको मारनेसे पाप लगता है। अब यदि इस भयसे कि पागल कुत्ता मनुष्यको काटेगा तो उससे मनुष्योंको हानि पहुँचेगी या अन्य अच्छे कुत्तोंको काटेगा तो पागल कुत्तोंकी संख्या बढ़ेगी, उन्हें मार दिया जाये तो हिन्दू धर्मशास्त्रोंके उपर्युक्त सिद्धान्तको दृष्टिसे क्या आप इसे उचित मानेंगे? क्या आप ऐसा कह सकते हैं कि इससे उनकी हत्या करने या करवानेवालेको पाप नहीं लगता?
हमारी सभाके (३ सज्जनोंके) शिष्टमण्डलने २८-९-१९२६ को मिलमें सेठजीसे मुलाकात की थी। उस समय बातचीत में उन्होंने यह कहा कि 'एक
  1. यह गांधीजीके गुजरातीमें लिखे गये आठ लेखों में से पहला लेख है, ये जिन तारीखोंमें नवजीवन में छपे थे, उसी क्रमसे दिये गये हैं।