मिल-मालिकका नाम अहमदाबाद तो जानता ही है; किन्तु 'नवजीवन' अहमदाबादके बाहर भी पढ़ा जाता है। इसलिए किसी सिद्धान्तकी चर्चा करनेमें जहाँतक हो सके नाम-ठाम न देनेकी अपनी प्रथाके अनुसार मैंने मिल-मालिकका नाम छोड़ दिया है। जीवदया सभाका उठाया हुआ यह प्रश्न कठिन है। जब यह घटना घटी तभी या उससे भी पहले, इसके तत्त्वकी 'नवजीवन 'में चर्चा करनेका मैंने विचार किया था; लेकिन पीछे वह विचार छोड़ दिया। यह पत्र मिलनेपर तो इसकी चर्चा करनेका दायित्व और कर्त्तव्य मेरे ऊपर आ ही पड़ा है।
मिल-मालिकके साथ मेरा मधुर—अगर कह सकें तो—मित्रताका सम्बन्ध है। उन्होंने कुत्तोंको मरवानेके बाद, मेरे पास आकर अपनी मनोव्यथा व्यक्त की थी और मेरी सम्मति पूछी थी। उन्होंने मुझसे कहा—"जब सरकार, नगरपालिका और पंच लोग, कोई भी मेरा छुटकारा न कर सके, तब मुझे यह काम करना पड़ा।" जिस उत्तरका इस पत्रमें उल्लेख है, मैंने वैसा ही उत्तर दिया था।
बादमें विचार करनेपर भी मुझे अपना उत्तर उचित मालूम होता है।
पागल कुत्तोंको मार डालनेके सिवा, हम अपूर्ण मनुष्योंके पास कोई उपाय ही नहीं है। खून करनेपर उतारू मनुष्यको मारनेका धर्म-संकट कई बार अनिवार्य हो जाता है।
अगर हम शहरोंके आवारा कुत्तोंको रखनेका हठ करेंगे तो उनको हमें खस्सी करना पड़ेगा या फिर मारना होगा। आवारा कुत्तोंके विशेष पिंजरापोल रखना तीसरा