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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऊपरसे देखा है। यदि मैंने उनके साथ अन्याय किया हो तो वह अनजाने ही किया है। लेकिन मुझपर पुस्तककी जो छाप पड़ी उसे मैं आपसे कैसे छिपा सकता हूँ।

इसलिए मेरी आपसे आखिरी बात यह है कि मेरे विचार भले ही कैसे [ भी ] क्यों न हों, आप उन्हें तोलना, लेकिन मानना तो वहीं जो आपकी अन्तरात्मा कहे। मनुष्य स्वयं ही अपने आपको बन्धनमें बाँधता है और अपना मोचन भी स्वयं करता है। दूसरे तो बोलकर अलग हो जानेवाले होते हैं।

आप दोनोंको आशीर्वाद।

बापू

श्री बहरामजी खम्भाता

२७५, हार्नबी रोड

फोर्ट, बम्बई

गुजराती पत्र ( जी० एन० ७५३४) की फोटो - नकलसे।

६०. पत्र : हरजीवन म० व्यासको

कार्तिक पूर्णिमा १९८३ [१९ नवम्बर, १९२६]

भाईश्री ५ हरजीवन,

आपका पत्र मिला। आपके दोनों प्रश्नोंके बारेमें मेरी दृष्टि आपकी दृष्टिसे भिन्न है।

मिलके कपड़ेमें चरबी पड़ती हो या न पड़ती हो; लेकिन उस कपड़े उपयोगसे करोड़ों मनुष्योंकी चरबी चूसी जाती है इसलिए वह त्याज्य है।

अगर विदेशी चीनीको साफ करनेमें हड्डियोंके चूरेका उपयोग होता है तो ऐसा माननेका कोई कारण नहीं कि देशी चीनीको साफ करनेमें उसका उपयोग नहीं होता होगा। लेकिन चीनी आदि पदार्थोंका कमसे कम उपयोग करना इष्ट है।

कोई भी चीज हो, वह कैसे बनाई जाती है— इस बातका यदि हम सूक्ष्म रूपसे अध्ययन करें तो हमें कोई-न-कोई दोष अवश्य दिखाई देगा; इसलिए विचार- वान् व्यक्ति कमसे कम वस्तुओंसे अपना काम चलायेगा। इसके सिवा यदि कोई वस्तु पड़ोसकी मिल सकती होगी तो वह बाहरकी वैसी वस्तुका ज्यादा अच्छी लगनेपर भी, त्याग ही करेगा।

मोहनदास गांधी वन्देमातरम्

ब्रह्मचारी हरजीवन मणिशंकर व्यास

झामका, पो० आ० बगसरा, भायानी

काठियावाड़

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९६७) की माइक्रोफिल्मसे।