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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्मरण रहे कि हमारी ओरसे स्वैच्छिक या अस्वैच्छिक स्वदेश प्रत्यावर्त्तन योजनामें शरीक होने न होने का सवाल नहीं उठता। सभी लौटे हुए प्रवासियोंकी देखभाल तो हमें करनी ही होगी। लेकिन यह काम किसी योजनाका अंग नहीं हो सकता। इस तरहका कोई समझौता देशप्रत्यावर्तनको कानूनन न सही वस्तुतः अनिवार्य बना देगा।

आशा है कि तुम्हें 'यंग इंडिया' बराबर मिल रहा होगा। लगभग हर अंकमें मैं दक्षिण आफ्रिकी मामलोंपर चर्चा करता ही हूँ। आगामी अंकमें उपनिवेशमें जन्मे भारतीयोंपर चर्चा होगी। इसमें उनसे अपील की गई है कि वे अपने लिए किसी विशिष्ट व्यवहारकी माँग न करें।

आशा है, तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक चल रहा होगा।

यहाँ चुनावोंने वातावरणको पूरी तरह विषाक्त कर दिया है।

सप्रेम,

तुम्हारा,
मोहन

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ९६७) की फोटो- नकलसे।

६७. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

२२ नवम्बर, १९२६

प्रिय सतीश बाबू,

मुझे आपके दो पत्र मिले हैं। जो कोई व्यक्ति कैप्टेन पेटावलके सम्बन्धमें आपका पत्र पढ़ेगा, वह विनोदकी कमी होनेका आपपर आरोप नहीं लगा सकता। संक्षिप्तता और चुभते हुए व्यंगकी दृष्टिसे इससे, अच्छा पत्र लिखना कठिन है।

प्रफुल्ल बाबूके बारेमें आपके पत्रसे मुझे बहुत ज्यादा दुःख हुआ है। अच्छा होता कि आपने मुझे इस अचानक परिवर्तनका कारण लिखा होता। वह अब क्या करने वाले हैं? क्षितीश बाबूके जैसा शान्त और स्थिर उत्सावाला व्यक्ति यदि मेरे अर्थात् आन्दोलनके अधिक करीब लाया जा सके, तो वह मेरे लिए जरूर महत्त्वपूर्ण बात होगी।

आपको किसी भी हालतमें, और किसी भी कारणसे अपनी मानसिक शान्ति नहीं खोनी चाहिए। अयोध्याकांडका वह अंश, जिसमें राम वनगमनका प्रसंग है, बार-बार पढ़िये। कष्टमें पड़े किसी व्यक्तिको प्रसन्न बनानेके लिए वह काफी है। जबतक स्वयं आपका आत्मविश्वास नहीं डिगता तबतक चाहे सारा संसार आपको त्याग दे, तो भी क्या? यदि खादीमें सच्चाई है, और उसके पुरस्कर्त्ता सच्चे हैं, तो वह कितने ही और झटके झेल जायेगी। आपको शीघ्र ही वर्धा आ जाना चाहिए और वहाँ शान्तिसे कुछ दिन बिताने चाहिए।