निश्चय ही यदि आप जरूरत समझें तो मुझे प्रफुल्ल बाबूको पत्र लिखनेको कहें। अभय आश्रमसे यह पत्र प्रकाशनार्थ आया है। कृपया मुझे बताइए कि इसका क्या किया जाये। में सुरेश बाबूको सूचित कर रहा हूँ कि छापनेसे पहले मैं इसे आपके पास भेज रहा हूँ।
सस्नेह,
बापू
अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० १५६४ ) की फोटो- नकलसे।
६८. पत्र : हेमप्रभादेवी दासगुप्तको
सोमवार [२२ नवम्बर, १९२६][१]
आपका पत्र मीला है. मुझे बहोत आनंद हुआ हमेशा लीखना चाहिये. प्रफुल्ल बाबुके नीकल जानेका सबब तो मैं नहि जानता हूं. ऐसा तो जगतमें होता हि रहेगा. आपने ठीक लीखा है कि दुःखकी बरदास करनेसे आत्माका विकास होता है. सर्वधर्मका यही शिक्षण है.
आप सबका स्वास्थ्य अब अच्छा जानकर मुझे शांति रहती है.
बापूके आशीर्वाद
मूल पत्र ( जी० एन० १६४५ ) की फोटो- नकलसे।
६९. पत्र : च० राजगोपालाचारीको
२२ नवम्बर, १९२६
आपका पत्र मिला। मैंने जब "हाथबुनाई बनाम हाथकताई" पर लेख[२] लिखा था, उस समय भी मैं जानता था कि जिन लोगोंको ध्यानमें रखकर लिखा है, उनपर इसका कुछ असर नहीं होगा। लेकिन में यह भी समझता था कि उनके जैसे सोचने वाले और भी बहुतसे लोग हैं। वे शायद स्थितिको समझ सकें। यदि में कभी वाइस-
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