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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसकी उन सब अच्छी बातोंको ग्रहण कर लेंगे जिसका प्रतिनिधित्व वहाँके अच्छेसे अच्छे अंग्रेज और अच्छेसे-अच्छे बोअर लोग करते हैं, तो वे हिन्दुस्तान और दक्षिण आफ्रिका के बीच जीती-जागती कड़ी बन जायेंगे।

गलतबयानी

'नाइन्टीन्थ सेंचुरी ऐण्ड आफ्टर' (उन्नीसवीं सदी और उसके बाद) नामक पत्र में मेरे विषय में एक लेख निकला था जिसे कुछ समय पहले एक मित्रने मेरे पास भेजा था। मैंने उसे देख लिया मगर उसमें इतनी अधिक गलतबयानियाँ थीं कि मैंने उसे पूरा पढ़ना बेकार समझा और उसमें दी हुई गलत बातोंका खण्डन करनेकी भी मुझे इच्छा न हुई। जो लोग उसपर विश्वास करते हैं उनपर मेरे खण्डनका कुछ असर पड़ेगा भी नहीं। लेकिन अब मुझे कानूनके एक विद्यार्थीका पत्र मिला है जिसे देखकर लगता है कि उन्हें लेखसे बहुत चोट पहुँची है और हालाँकि उन्हें उसकी बातोंमें कोई विश्वास नहीं है, फिर भी वे लेखमें कही गई दो खास बातोंके विषय में लिखनेको कहते हैं। वे हैं:

गांधी अधीन किसी स्कूलमें ऊँची जातिके किसी आदमीने अपने लड़के- को छोटी जातिवालोंके साथ पढ़ानेसे इनकार किया, और शिक्षकने भी, जो ऊँची जातिका था, नीची जातिके लड़कों को पढ़ानेसे इनकार किया। गांधी पास यह झगड़ा पहुँचा और उन्होंने ऊँची जातिवालोंकी ही बात कायम रखी। गांधीका यह कहना कि अगर उनकी चलती तो वे अछूतोंकी सहायता करते, काफी नहीं है।

उस समयके अखबारोंमें छपा था कि गांधी इस समय बम्बईमें चंदा वसूल करनेमें लगे हुए हैं और फिलहाल नहीं जा सकते, इत्यादि।

ये दोनों बातें गलत हैं। जिन्हें अछूतोंके लिए किये गये मेरे कामोंका ज्ञान है, वे जानते हैं कि दोस्ती और सार्वजनिक कामोंके लिए चन्दे खोनेका खतरा उठाकर भी मैंने राष्ट्रीय संस्थाओं में अछूतोंके प्रति हर प्रकारके भेदभावका विरोध किया है। चाँदपुरवाली बात आधी सच्ची है। यह ठीक है कि जब झगड़ा शुरू हुआ तब में वहाँ नहीं गया किन्तु लेखमें बताया गया कारण सरासर झूठ है। मैं सर्वव्यापी नहीं हूँ। मेरा कार्यक्षेत्र भी सीमित ही है। जो काम मेरे सामने आ जाता है, उसमें लग जाता हूँ। मैं वहीं आता हूँ जहाँ मेरी जरूरत मानी जाती है और जहाँ में अपनेको कुछ करनेके योग्य समझता हूँ। जहाँ कहीं हिन्दू-मुस्लिम झगड़े होते हैं वहाँ यदि में दौड़ा नहीं जाता तो इसका कारण यह नहीं है कि मैं जाना नहीं चाहता या काममें व्यस्त रहता हूँ, बल्कि इस कारण कि मैं अपनेको असमर्थ समझता हूँ। इसी तरह जहाँ-कहीं मजदूरोंके झगड़े होते हैं, में वहाँ भी नहीं जाता, चाहे मुझे बुलाया ही क्यों न जाये। उस समय मैं जो काम कर रहा था, उससे और मेरे