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८२. एक पत्र[१]

आश्रम
बृहस्पतिवार, २५ नवम्बर, १९२६

भाईश्री,

आपका पत्र मिला। खेतीके महत्त्वके बारेमें मेरे मनमें तनिक भी शंका नहीं है, लेकिन उसकी उन्नतिके लिए मैं चरखेसे अलग किसी और उपायको नहीं जानता।

मोहनदास गांधी वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९६९ ) की माइक्रोफिल्म से।

८३. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

कार्तिक कृष्ण ६, १९८३ [ २५ नवम्बर, १९२६ ]

भाईश्री ५ घनश्यामदासजी,

आपका तार मीला है। कहते हुए मुझे खेद होता है कि मेरा अगला पत्र आपको पू० मालवीयजीके पतेपर भेजा गया था। उसमें इतना था। मेरी राय आपके इस कारण यूरोप जानेके विरोधमें है। यदि जाना आवश्यक है तो स्वतंत्र जाना चाहिये। ऐसे खतोंकी नकल नहीं रहती है। परंतु मतलब यही थी। यदि आपने जानेका वायदा किया था तो बात बदल जाती है। और जानेका आपका धर्म हो जाता है।

आपका,
मोहनदास गांधी

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू ० ६१३९) से। सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला

  1. पत्र जिसे लिखा गया था, उसका नाम ज्ञात नहीं है।