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'गीता-शिक्षण'

करना चाहिए। उसी समय भीतर आवाज उठी कि बहनोंके साथ तू रोज क्या बाँचता रहता है।' 'गोविन्द, द्वारिकावासिन्' इत्यादि । कदाचित् भगवान कृष्ण गरुड़पर सवारी करके आ रहे हों। यदि हमारा सब-कुछ बाढ़में बह जाता है तो हमारी लाज बच जायेगी और हममें से जो साक्षी-रूप बचकर यहाँ रह जायेगा वह हमारे व्रतोंका पालन किया करेगा ।

मैंने बुनाईशालाको बिलकुल रास्तेसे लगाकर बनानेकी सलाह दी थी । 'अशक्ति- मान भवेत् साधुः' इस न्यायके अनुसार हमें शान्तिपूर्वक बैठे रहना चाहिए। यदि जेलके अधिकारी हमें आश्रय देनेके लिए बुलायें तो उनसे में पूछूंगा कि आप वाडज ग्रामके निवासियोंको भी अपने यहाँ आश्रय देंगे ? मैं तो उनसे यही कहूँगा कि पहले आप दूसरोंको आश्रय दें, बादमें हमें ।

हमें स्वादके लिए नहीं, देहको निभानेके लिए खाना हो तो हम अवश्य खायें। हम इसीलिए खायें कि हम शरीरकी शक्तिको बनाये रखना चाहते हैं। मैं निश्चिन्त भावसे बैठा हूँ और इतनेमें ही मिलके पोंगेकी आवाज सुनता हूँ। उसे सुनकर विचार आया कि कर्म किसीको नहीं छोड़ता । 'भवाम्भोधि पोतं शरण्यं व्रजाम:' मुख्य बात तो यही है । यह खतरा ऐसा कौनसा बड़ा खतरा है। बड़ेसे-बड़े खतरेके सामने भी ईश्वरका नाम जपते हुए, द्वादश मन्त्र जपते हुए अथवा जिस वस्तुसे आश्वासन मिलता हो उसका नाम जपते हुए निश्चिन्त रहना चाहिये। भीतरका तूफान बड़ा है या बाहरका यह तूफान ? जिस तरफ नजर नहीं जानी चाहिए, वहाँ बार-बार नजर जाती है। कान भी ऐसा ही करता है तब फिर उसकी अपेक्षा क्या यह तूफान अधिक है ? आश्रम में बहुत-से पक्षी हैं, मैं चाहता हूँ कि स्त्रियोंको भी पंख लग जायें। जिसे जाना हो वह तो जा भी सकता है। रेलगाड़ीमें कहीं दूर अथवा उस पार । गाँवके मालगुजारकी तरह मुझे तो इतना ही सूझ रहा है। तुममें से किसीकी बुद्धि इससे आगे जाती हो तो अच्छी बात है।

अब श्लोक लें :

रुद्रगण, आदित्यगण, वसुगण, साध्यगण, विश्वदेवता, दोनों अश्विनीकुमार, मरुत- गण, पितर-समुदाय तथा यक्ष, असुर और सिद्धगण - सभी आपको विस्मित होकर देख रहे हैं।

हे महाबाहो, आपके अनेक मुखवाले, अनेक नेत्रवाले, अनेक बाहु और पदोंवाले महान् स्वरूपको, जिसके अनेक उदर और अनेक कराल दंत हैं, देखकर सभी लोक व्याकुल हो रहे हैं और मैं भी व्याकुल हो रहा हूँ ।

आप आकाश छू रहे हैं, देदीप्यमान हैं, आप अनेक रूपोंसे युक्त हैं, आपके मुख फैले हुए हैं, नेत्र विशाल और दीप्त हैं -- ऐसे आपके रूपको देखकर मेरा अन्तःकरण भयभीत हुआ जा रहा है, हे विष्णु, मुझे धीरज और शान्ति नहीं मिल पा रही है।

१. आश्रम में स्त्रियों द्वारा की जानेवाली प्रार्थनाके श्लोकों की ओर इंगित है।