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३. सन्देश : 'फॉरवर्ड' को

उनकी[१] महान् विरासतके उत्तराधिकारी होनेके नाते अपने कामोंके द्वारा उसका पात्र बनना हमारा कर्त्तव्य है।

[ अंग्रेजीसे ]
फॉरवर्ड, ६-११-१९२६

४. क्या यह जीवदया है? - ५[२]

एक भाईने लम्बा पत्र लिखा है। उसमें उन्होंने अपनी कठिनाइयोंका वर्णन किया है और बादमें स्वयं श्रावक होनेके नाते जैन-धर्म क्या बतलाता है सो लिखा है। उनमें से एक प्रश्न यह है:

आपने लिखा है कि "आवारा कुत्तोंका पालन किया जा सकता है! और यदि ऐसा न किया जा सकता हो तो उनके लिए पिंजरापोल बनवाये जाने चाहिए। दोनोंमें से यदि एक भी सम्भव न हो तो उन्हें मारनेके अलावा मैं और कोई उपाय नहीं देखता। "क्या आपके इस कथनका आशय यह है कि कुत्ता पागल न हो फिर भी, उपर्युक्त दोनों उपायोंकी अनुपस्थितिमें आवारा कुत्तोंको मार देना चाहिए?
उत्तर यदि "हाँ" में हो तो जिन अनेक हानिकारक पशु-पक्षी और जन्तुओं को हम तबतक नहीं मारते जबतक वे मानव जीवनको सचमुच कोई नुकसान नहीं पहुँचाते, क्या यह सोचकर कि भविष्यमें वे नुकसान पहुँचायेंगे, अब उन्हें देखते ही मारना शुरू कर दिया जाये? सवाल यह है कि इसमें दयाधर्मका पालन कैसे होगा? प्राणिमात्रका भला चाहनेवाला कोई व्यक्ति क्या ऐसा कर भी सकता है?

ऐसे प्रश्न मेरा आशय ठीक-ठीक न समझनेसे ही उठते हैं। महज मारनेकी खातिर तो मैं पागल कुत्तोंको भी मारनेके लिए नहीं कहता। तो फिर आवारा कुत्तोंकी तो बात ही क्या? आवारा कुत्तोंको देखते ही मार डालनेका सुझाव भी मैंने नहीं दिया है। मैंने तो वैसा कानून बनानेकी बात सुझाई है। यदि वैसा कानून बन जाये तो उसका स्वाभाविक परिणाम यह होगा कि दयालु लोग जाग जायेंगे तथा आवारा कुत्तोंकी रक्षाके लिए कुछ उपाय खोजेंगे। उनमें से कुछको पाल लिया जायेगा, कुछको

  1. चित्तरंजन दास।
  2. इस लेखमालाके पिछले चार लेखोंके लिए देखिए खण्ड ३१।